बुधवार, 6 अगस्त 2014

गंगा मेरी जमुना भी मेरी

ये गंगा तो मेरी है ये जमुना भी मेरी है
ये मंदिर भी मेरा है ये मस्जिद भी मेरी है
ये कश्मीर हमारा है तो कन्याकुमारी भी मेरी है
लेकिन ये देश मेरा नहीं है जिसमे आजकल रहता हूँ
अब ये बात तो मैं सबसे खुले दिल से कहता हूँ

ये संसद भी मेरी है ये पंचायत भी मेरी है.
ये त्येहार भी मेरे हैं ये रवायत भी मेरी है
पर इस संसद पर अब कब्ज़ा किसी और का है

ये शहर मेरा है पर इसमें अब कोई और रहता है
ये रेगिस्तान भी मेरा है ये हिमालय भी मेरा है
ये खेत भी मेरा है ये फसल भी मेरी है
ये रिक्शा भी मेरा है ये बैलगाड़ी भी मेरी है
पर जिस देश में रहता हूँ अब वो मेरा नहीं है

ये स्कूल तो मेरा है पर भाषा मेरी नहीं है
ये किताब मेरी है पर इसमें कहानी किसी और की है
ये रस्ते मेरे हैं पर निशानी किसी और की है

ये रंग भी मेरा है ये ब्रश भी मेरा है
ये मेहनत मेरी है ये कल्पना मेरी है
पर ये चित्र मेरा नहीं इसकी कीमत भी नहीं मेरी है
मैं रहता जरुर हूँ इस देश में पर ये मेरा नहीं है

ये आसमान भी मेरा है ये धरती भी मेरी है
पर इस देश में मेरा कोई डेरा नहीं है
ये पसीना भी मेरा है ये हल भी मेरा है
पर भूखा मरता हूँ रोज़ और इसका हल भी नहीं है
क्योंकि अब इस देश में , अब मेरा कोई देश नहीं है

ये वोटभी मेरा है, कहने को सरकार भी मेरी है
पर सब कुछ उनका है.नहीं कुछ भी अब तेरी है

ये कलम भी मेरी है ये स्याही भी मेरी
पर अख़बार उनका है, ये चैनल उनका है
सच बोल नहीं सकता , यही तो हमारी मजबूरी है
.
इस देश में रहता जरूर हूँ मैं सालों से
पर केवल भारत मेरा है ये इंडिया उनका है
एक देश में ही अब दो देशों के बीच कितनी दूरी है
.
विमल कुमार

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