रविवार, 27 सितंबर 2015

आएंगे अमरीका से अच्छे दिन

 अमरीका  से आयेंगे अब अच्छे दिन 
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आयेंगे 
अब जल्द ही आयेंगे 
 अच्छे दिन 

सीधे अमरीका से आयेंगे
दे दिया गया है आर्डर उनका
 पिछले दिनों
दौरे पर

एक कंपनी बना रही है उन्हें
नयी तकनीक से
जल्दी ही आयेंगे
 अच्छे दिन 
जापान से होते हुए
 फ्लाइट से आयेंगे
इंदिरा गाँधी एअरपोर्ट पर
  उतारा  जायेगा उन्हें 

गाजे बाजे   के साथ 



आयेंगे अच्छे दिन
कार्टन में भर भर कर
ऊपर लगी होगी पन्नी रंग बिरंगी
गुलाबी फीता भी लगा होगा
शानदार पैकेजिंग में आयेंगे
इम्पोर्ट होकर आयेंगे
 अच्छे दिन
जब एक्सपोर्ट होगी हमारी संस्कृति 
तो आयेंगे अच्छेदिन
एक दिन जरूर

फिर क्या तुम्हे नौकरी मिलेगी
एक बंगला भी मिलेगा
वाई फाई युक्त जीवन होगा

आयेंगे अच्छे दिन
अगर विमान में होती जगह 
तो उनके साथ ही आ जाते
लेकिन अब   तुम्हारे घर
 कुरियर सेआयेंगे 
घर पर रहना आज तुम
घंटी बजेगी
और एक आदमी तुम्हे करेगा डिलीवर

फिर क्या
बदल जायेगा तुम्हारा जीवन
न्याय ही न्याय होगा
ख़त्म हो जायेंगे अपराध
 गरीबी मिट जायेगी
दाखिले में कोई दिक्कत नहीं होगी
इलाज़ भी हो जायेगा मुफ्त
बिजली रहेगी दिन रात
पानी भी चौबीस घंटे

आयेंगे अच्छे दिन
भले ही तुम इंतज़ार करते करते मर जाओगे
अदालत का चक्कर लगाते लगाते  बूढ़े हो जाओगे
नौकरी की खोज में  बन जाओगे नक्सली 
मुसलमान हो तो आतंकवादी कहलाओगे

रोटी के लिए चोरी  करना भी  सीख जाओगे
पर आयेंगे अच्छे दिन
 एक दिन याद रखना
बस कम्युनिस्टों की तरह आलोचना करना बंद कर दो
हर अच्छी शुरुआत का

आयेंगे अच्छे दिन
पर सबसे पहले
अखबार  में उसका इश्तहार आएगा
टी वी पर होगी उसकी ब्रेकिंग न्यूज़
रात आठ बजे
 टक्कर में होगी उस पर एक बड़ी बहस

फिर तुम नहीं कहना
कि अच्छे दिन नहीं आये आजतक
और वो तो  सिर्फ एक जुमला भर था
 अच्छे दिन इस तरह आयेंगे 
कि तुम देखते रह जाओगे
और उन्हें ढूंढ भी नहीं पाओगे
अछे दिनों के साथ
एक सेल्फी खींचने के लिए बस तरस जाओगे





गुरुवार, 10 सितंबर 2015

क्या क्या नहीं सीखा मैंने

क्या क्या नहीं सीखा था मैंने
चाय बनाते बनाते
सब से पहले यही सीखा था
 मजमे लगाने की कला
फिर सीखी  हाथ चमका कर
 बोलने की शैली

चाय बनाते बनाते ही जाना  था मैंने
जब पानी और चीनी में अंतर है 
तो 
दो कौमों में भी है  बहुत फर्क

अलग है भाषा और लिपि
 तो वे एक कैसे हो सकते हैं
फिर ये भी सीखा
धर्म की बुनियाद से ही होगा विकास मुल्क का
सीखी मैंने  चेहरे पर मुखौटे लगाने की कला  
यह भी सीखा मैंने
जरूरत पड़ने पर गिरगिट की तरह रंग भी बदला जा सकता है


चाय बनाते हुए ही मैंने सीखा उसे कैसे बेचा भी जाता है
फिर पकेजिंग की कला में निष्णात हो गया
नाम बदल कर उसे बेचने में उस्ताद हो गया

चाय बनाते बनाते मानवता और इमानदारी पर भाषण देना भी सीख गया
सीख लिया कि वक़्त पड़ने पर
 कैसे अपना उल्लू सीधा किया जा ता है
और बहुत कुछ सीखा
जिसकी एक लम्बी फेहरिश्त जारी भी की जा सकती है

चाय बनाते बनाते देश को बेचने की तरकीब भी सीख गया मैं
अमीरों के विकास को
 गरीबों के विकाश की शक्ल में पेश करना भी सीख गया


चाय बनाते हुए हिन्दी तो सीखी ही
प्रोम्टर पर अंग्रेजी पढना भी सीख लिया  मैंने  
टिकेट बाँटने का गुर भी सीखा
सब कुछ सीख लिया मैंने
पर एक चीज़ नहीं सीख पाया
कि जिसके कारण लोग धीरे धीरे मेरी हकीकत जान ने लगे है 
मेरी कलाई अब खुलने लगी है
पर चुनाव जीतने की कला से
 मुझे नहीं कर सकता कोई वंचित 
 सच की तरह  झूठ बोलने की महारत से
 मैं बदल सकता हूँ इस देश को
जिसकी कल्पना आपने नहीं की होगी कभी
लेकिन जब तक तुम लोग करोगे इंतज़ार 
 कि किस तरह   उतरता हैमेरा   जादू .
तबतक  चाय की चुस्कियों में  फैल   चुका .  होगा ज़हर 




बुधवार, 2 सितंबर 2015

स्मार्ट सिटी में हत्या

स्मार्ट  सिटी में ही उसकी हत्या हुई थी
एक दम नए अंदाज़ में
हत्यारे आये थे चार
मोटर सायकिल पर होकर सवार
हाथ में लिए त्रिशूल
और एक तिरंगा लहराता हुआ

बलात्कार भी वहीं हुआ था
एक ईमारत के तहखाने में
जहाँ डिजिटल इंडिया का बोर्ड लगा था
चमचमाता हुआ

योग दिवस के दिन ही लूट लिए गए थे
मुसाफिर बस में
वे चीखते हुए उतरे ही थे
कि उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था
उन्होंने अपने मन की  व्यथा पोस्ट की थी
जिस से शांति भंग होती थी
शहर में


मेक इन इंडिया के सेमिनार से लौट ते हुए उसने देखा
उसके घर में आग लगा दी गयी है
कि उसका नजरिया धर्म के विरुद्ध है
और राष्ट्रप्रेम का प्रमाणपत्र नहीं था उसके पास कोई

ये वो दौर था
जब लाल किले से बताया जा रहा था
अब सब कुछ ऐतिहासिक होता जा रहा है
चीन को हम जल्द ही छोड़ देंगे पीछे
दुनिया में हमारी तूती बोलेगी
लेकिन इसी बीच आंकडा पार कर गया था
पांच लाख से ऊपर
क्योंकि किसान अवैध रिश्तों के कारण अब आत्म हत्या करने लगे थे


स्मार्ट सिटी से जैसे ही बाहर निकला
तेज बदबू का भबका आया
और फिर आयी मुझे उबकाई
तभी रेडिओ पर सुनायी पडी उनकी आवाज़
मित्रों हमें इस देश को संस्कृत के जरिये बुलंदियों पर ले जाना है
तभी हम फिर सोने की चिड़िया कहलायेंगे एक दिन





मंगलवार, 1 सितंबर 2015

यह देश रहने लायक नहीं रहा

यह देश अब रहने लायक नहीं रहा
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जब मुम्बई की लोकल में चढ़ ता हूँ
या दिल्ली की मेट्रो में
भेड बकरियों की तरह ठूंस दिया  जाता हूँ
निकलता हूँ बाहर  जब चिथड़े चिथड़े  होकर
तो यही सोचता हूँ
कि अब यह  देश रहने लायक नहीं रहा
 लेकिन क्या करूँ
इसी देश में रहता हूँ
रोज़ जीता हूँ
रोज मरता हूँ

जब कैंसर के इलाज के लिए भी
धक्के खता हूँ
और आपरेशन के इंतज़ार में
मर जाता हूँ
तो सोचता हूँ
कि यह देश रहने लायक नहीं रहा
अपना इलाज भी नहीं करा सकता
किसी सरकारी अस्पताल में
लेकिन कहाँ जाऊं
इसी देश में रहता हूँ
रोज़ जीता हूँ
जनगणमन  कहते हुए मरता हूँ

अखबार में पढता हूँ
कि तीन करोड़ से अधिक  मुकदमे हैं लंबित
बीस साल से एक विचाराधीन कैदी
है  न्याय के इंतज़ार में है

दो हज़ार बेगुनाह क़त्ल कर दिए जाते हैं
और किसी मुजरिम को फंसी नहीं होती
और होती है किसी को
तो बाईस साल की सजा काट  लेने के बाद

तो मैं सोचता हूँ
ये देश अब रहने लायक नहीं रहा
लेकिन इसी देश में रहता हूँ
रोज़ दफ्तर जाता हूँ
दफ्तर से आकर घर में मरता हूँ
 सांस  रहती हैअटकी
कि मेरे बच्चे का अपहरण न हो जाये
मेरी बेटी के साथकहीं  बलात्कार न हो जाये

एक दिन जब जाना
 निर्भया की घटना के बाद
 सत्तर हज़ार मामले बलात्कार के हुए दर्ज


तब सोचता हूँ फिर
ये देश अब रहने लायक  नहीं रहा
लेकिन क्या करूँ
कहाँ जाऊं
जब पांच लाख किसानो की आत्महत्या के बाद
उनके घर के लोग
 इसी देश में जी रहे है रोते बिलखते  हए
एक उम्मीद के साथ

मैं भी ज़िंदा हूँ किसी तरह
इस उम्मीद के साथ
अब तक कि कोई सूरत बदलेगी
मुल्क रहने लायक हो जायेगा एक दिन
लेकिन ये अंदेशा बना रहता है
कि किसी नरसंहार में मैं भी कहीं न मार दिया जाऊं
या नौकरी से निकाल  न दिया जाऊं
यह कहकर कि नक्सालियों से दोस्ती है मेरी

लेकिन जब देखता हूँ
कि इस देश में लोग जी रहे हैं
अपने अधकारों के लिए लड़ते हुए
तो थोड़ी ताक़त मुझे भी मिलती है
और फिर मैं भी इसी देश में जीने लगता हूँ
ये जानते हुए कि अब यह देश रहने लायक नहीं रहा
जबकि मैंने भी बहुत कोशिश की  ये थोडा बदल जाये
.पर ये बदलता भी नहीं है किसी भी चुनाव  के बाद

क्योंकि मेरे मोहल्ले का इमानदार आदमी हर बार हार  जाता है
झूटे  सपने दिखानेवाले लोग अक्सर जीत जाते हैं
इसलिए मैं कहता हूँ झल्लाकर
अब ये देश रहने लायक नहीं रहा
अगले दिन कोई आता है मोटरसाइकिल  पर
और मुझे दिन दहाड़े गोली मार कर चला जता है
 यह कहते हुए
 कि तुम भारत माता की इस तरह
 तौहीन नहीं करसकते हो