शुक्रवार, 29 अगस्त 2014

वो आये मगर इतिल्ला देकर

वो आये मगर इतिल्ला देकर----
वो आती है
हर किसी के जीवन में
पर बहुत चुपके से
बिना किसी को इतिल्ला किये
अचानक ही आ धमकती है
एक बिल्ली की तरह बरामदे में
कई बार कानो कान  खबर भी नहीं होती

कई बार अंदेशा होता है
कि वो आ रही है
पर उसके आने की तारीख
या समय भी  नहीं मालूम होता

वह रात में या दिन में
या अल्सुब्बह
कभी भी किसी वक़्त आ जाती है
कई बार वो नींद में ही जाती है
जब आती है
तो घर में पड़ोस में भी सुनायी पड़ती है
रूलाई
क्या वो ज़िन्दगी से डरती है
इसलिए आती है
 उसे दबोचने चुपचाप
हर दम
हर युग में
वो इसी तरह
आती है क्रूर तरीके से
आधुनिकता या
भूमंडलीकरण का
 उस पर आज तक असर नहीं हुआ  

मुझे उसके आने का भय नहीं
कोई गम भी नहीं
क्योंकि एक दिन तो उसे आना ही है
हमसबके जीवन में
मुझे बस एक ही शिकायत है
कि वो बता कर क्यों नहीं आती
हम उसके स्वागत का कुछ इंतजाम भी तो कर लेते
कुछ अपने काम निपटा लेते
कम से कम अपनी मेज़ साफ़ कर लेते
कुछ सब्जी ला देते घर के लिए
बिजली और टेलीफ़ोन का बिल जमा कर लेते
आये वो बेशक
पर आने से पहले मेरे दरवाज़े पर एक इश्तहार चिपका ले
कि मैं आ रही हूँया टेलीफ़ोन कर ले
या मुझे एक मेल ही भेज दे
या वो किसी से सन्देश ही भिजवा दे
उसके आने से पहले
 मैं थोड़ी अपनी ज़िन्दगी तो जी लूं
उसके साथ जाने से पहले
एक अछी सी  प्यारी सी नींद तो ले लूं.
एक ख्वाब तो देख लूं

मरने से पहले .

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