मैं तुमसे प्रेम नहीं कर
रहा था
मैं तो दरअसल सिर्फ ये बता
रहा था
क्या है मेरे प्रेम की
परिभाषा
क्या है उसकी शैली
क्या है उसकी भाषा
कितना अलग है वो
अपने प्रचलित अर्थों में
कितना भिन्न
अपनी रूढ़ियों से
मैं तुमसे प्रेम नहीं कर
रहा था
मैं तो बस एक कागज़ पर
उसका नक्सा खींच रहा था
जिसे बार मिटा रहा था
अपने समय में बरसात का पानी
मैं तो उस नक्से पर जमी धूल
ही अब तक हटा रहा था
इस तरह मैं एक नया प्रयोग
कर रहा था
अपने समाज में
मैं तुमसे प्रेम कहाँ कर
रहा था
मैं तो तुमसे मिलकर
जीवन का नया आविष्कार कर रहा था
जिसका दम अँधेरे में रोज
घुट ता जा रहा था
मैं तुमसे प्यार कहाँ कर
रहा था
मैं तो सिर्फ अपने दौर की एक कविता ही लिख रहा था
जो आजतक लिखी नहीं गयी मुझ से .
इतने साल सुबह सुबह लिखने
के बाद भी
विमल कुमार .
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