बुधवार, 20 अगस्त 2014

प्रेम परिभाषा

मैं तुमसे प्रेम नहीं कर रहा था
मैं तो दरअसल सिर्फ ये बता रहा था
क्या है मेरे प्रेम की परिभाषा
क्या है उसकी शैली
 क्या है उसकी भाषा
कितना अलग है वो
अपने प्रचलित अर्थों में
कितना भिन्न
अपनी रूढ़ियों से

मैं तुमसे प्रेम नहीं कर रहा था
मैं तो बस एक कागज़ पर
 उसका नक्सा खींच रहा था
जिसे बार मिटा रहा था
अपने समय में बरसात का पानी
मैं तो उस नक्से पर जमी धूल ही अब तक हटा रहा था
इस तरह मैं एक नया प्रयोग कर रहा था
अपने समाज में

मैं तुमसे प्रेम कहाँ कर रहा था
मैं तो तुमसे मिलकर
 जीवन का नया आविष्कार कर रहा था
जिसका दम अँधेरे में रोज घुट ता जा रहा था

मैं तुमसे प्यार कहाँ कर रहा था
मैं तो सिर्फ अपने दौर की  एक कविता ही लिख रहा था
 जो आजतक  लिखी नहीं गयी मुझ से .
इतने साल सुबह सुबह लिखने के बाद भी

विमल कुमार .

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