शुक्रवार, 2 सितंबर 2016

प्रेम एक प्रश्न है

 अवव्वल तो मैं तुम्हे   सलाह नहीं दूंगा
कि तुम करो किसी से प्यार


लेकिन   तुम चाहते हो
करना  किसी से  प्यार
तो उसे सफलता  या असफलता के पैमाने  से नहीं देखना कभी
अपने समय और भूगोल के हिसाब से रचे जाते हैं
 सारे    पैमाने
शक्ति संरचना से होते हैं निरंतर   संचालित

इसलिए मैं कहता हूँ
अगर  तुम चाहते हो  करना किसी  से  प्यार
तो तुम यह हिसाब नहीं रखना हरगिज
 कि तुमने पाया क्या
खोया क्या आखिर अंत में

यह तो एक अंतहीन यात्रा है
समुद्र में
जंगल और कंदराओं में
 वर्षों से भटकते हुए कोई खोज



 सत्य तो यही  है
कि पुकारती हैं
यह देह अक्सर

रात के अँधेरे में
छटपटाती  है आत्मा

तब फिर प्रेम क्या है
एक कुआँ

एक प्रश्न
प्रेम कोई उत्तर नहीं है





गुरुवार, 4 अगस्त 2016

पोएट्री  मिस मैनेजमेंट
----------------------
कविता क्या है

शुक्ल जी की तर्ज़ पर
सोच रहा हूँ अव ग्लोवल समय में
पोएट्री क्या है

मैनेजमेंट
या फिर मिस मैनेजमेंट

तभी पास हो गया जी  एस टी कल देर रात में
खूब छपी खबर अखबार में
कि यह एतिहासिक है

कहा टी वी के सामने मंत्री ने
यह तो बिलकुल क्लासिक है

इसी मंत्री ने सेवेंथ पे कमीशन को भी हिस्टोरिक  बताया था
अपनी सरकार को करगिल वार में  हेरोइक बताया था

पोएट्री क्या है
मैं सोच ही रहा था

कि दौर पड़गया मुझको रास्ते में
करने लगा अजीवों गरीब हरकते
लिखने लगा नीद में प्रेमिकाओं को   खतें

लेकिन एक क्रिटिक ने मुझे आलोचक बता दिया
आयी एन  जी सी ऐ  के सभागार में 

होम मिनिस्टर के सामने एक बूढ़े लेखक के त्यौहार में 
कल्चर मिनिस्टर के पास  मंच पर बैठा मैं सोचता रहा

पोएट्री क्या है

मैनेजमेंट या मिस मैनेजमेंट

कि कुछ भी लिख दूँ
और हो जाऊं फेमस
 बिना किसी संवेदना के
निरी बौद्धिकता के
जिसमे असीम सामाजिकता हो

पर क्या यही अब लिटरेचर की वास्तविकता हो
दोष राइटर का नहीं
महिला फाइटर का नहीं
जूरी का है
यानी हिन्दी कहानी के शेर शाह सुरी का है

दर असल यह साहित्य में एक ट्रम्प कार्ड था
संयोग देखिये अमरीका  में भी एक ट्रम्प  था
इलेक्शन में खडा था
भारत में भी एक प्रतिभाशाली शख्स कविता के  सेले कशन में परदे के  पीछे खडा था

पोएट्री क्या है
केवल खुन्नस तो नहीं
 कोई महत्वाकांक्षा तो नहीं
सूचनाओं का रजिस्टर तो नहीं
केवल प्रदर्शन तो नहीं
चर्चित होने के  लिए आमरण अनशन तो नहीं
फेसबुक पर सुबह से शाम तक घर्षण तो नहीं

मैं सोच ही रहा था
कि चैनल पर शुरू हो गया था मुकाबला
सतीश उपाध्याय आ ही गए थे
हमेशा  की तरह विराजमान थे राकेश जी

इस बीच इन्फ्लेसन और बढ़ गया था
रूपया डॉलर के मुकाबले और कमजोर हो गता था
नीति आयोग की कोई नीति नहीं थी
रचना को देखने की उनकी दृष्टि में कोई स्फीति नहीं थी
क्योंकि समर्थक भी विकराल थे

पोएट्री क्या है
 सोच ही रहा था
 कि एयरफोर्स का एक विमान लापता हो गया था
राष्ट्रभक्त १७२ फीट  तिरंगा लिए खड़े थे उना में

एच आर डी मिनिस्टर अपने  गुरु से मिल रहे थे पूना में

पूरा दृश्य मुल्क का पीपली live था
कविता थी  इंटरनेशनल
 अब उसका हाइप था
कवि भी झोला छाप  नहीं था 
बाकायदा आयी आयी एम् का एम् बी ऐ था 
पोएर्टी क्या है

अबतक कोई जान नहीं पाया था
गूंगे का गुड था
 या हाथी का सूंढ़ था
सबके धारदार तर्क थे
जो  अधिक चतुर थे 
उनके विचित्र कुतर्क थे
कुछ लोग इस बहस में बहुत सतर्क थे

पोएट्री क्या है
मैं सोच ही रहा था
मैनेजमेंट
या मिस मैनेजमेंट
या एडिटर का जूरी के साथ निजी अरेंजमेंट

लेकिन यह सच है
यह एक निहायत स्त्री विरोधी वक्तव्य था
यह  कविता विरोधी बयान  भी था
कुंठित पुंसत्व से भरा हुआ
 भीतर ही भीतर सड़ा हुआ


अरे भाई एक स्त्री को  को लिखने दो
क्यों पीछे  पड गए
उसे अभी सीखने तो दो 

बहस का स्तर इतना न गिराओ
पोएट्री मैनेजमेंट न सही
मिस –मैनेजमेंट  तो न कहो

मिल जाये जब किसी को अवार्ड
तो मान लीजिये
 कि रचना महान है

कविता की समझ नहीं आपको
नहीं मिला जो यह पुरस्कार कभी लालटेन छाप को


बंद करें  बहुत हो गया   यह प्रलाप 
कभी तो कुछ अच्छा भी लिखें आप 

रविवार, 19 जून 2016

सारी स्त्रियों से प्यार

मैं संसार की सारी स्त्रियों से  करना चाहता था प्रेम 
कृपया इसे अभिधा में न समझा जाये
सच तो य ह है कि एक भी स्त्री ने मुझसे प्रेम नहीं किया आज तक
इसे कृपया निराशा की व्यंजना में भी न समझा जाये
जब व्यंजना और अभिधा के बीच इतनी दूरियां हो गई हों 
जब ज़माने में हर तरह की मजबूरियां हो
लग भग असंभव था
संसार की हर एक स्त्री से प्रेम करना
यहाँ तक कि एक से भी
चाहे वह अपनी पत्नी  ही क्यों न हों
इसलिए मैं सबसे एक तरफा ही प्यार करता रहा
उन्हें बिना बताये बिना जताए 
क्योंकि वही सबसे मुफीद तरीका है प्रेम का
क्योंकि अक्सर यह देखा है मैंने
प्रेम को जाहिर करते ही
स्थितियां हो जाती है  अत्यंत 
 विकट
कई स्त्रियों ने  मु झसे यह सवाल किया
आप प्रेम ही क्यों करना चाहते हैं किसी स्त्री से
हालाँकि उनके इस सवाल में भी दम था
उसे मैं किसी भी सूरत में ख़ारिज नहीं करना चाहता था
स्त्रियों को अपना मित्र भी तो मना सकते हैं
लेकिन अभिधा और व्यंजना की   दू रियों ने
उन्हें मेरा मित्र भी बनने नहीं दिया
लेकिन इस खोज ने मुझे इतना हास्यास्पद बना दिया
कि संसार की सारी स्त्रियों से प्रेम किया जाये
इसलिए मैंने सोचा कि प्रेम करने बेहतर है
उनका शुभचिन्तक बना जाये
हालाँकि इसमें भी एक खतरा है
इस आरोप के लगने का
कि तुम इसलिए उससे प्रेम करना चाहते हो
कि उसे पाने की गहरी इच्छा है
कहीं न कहीं तुम्हारे भीतर

और इसलिए तुम कभी
किसी स्त्री से प्रेम नहीं कर पाओगे
भले मर जाओगे तड़पते हुए उसकी याद में
एक दिन तुम
.संसार की सारी स्त्रियों से अब भी प्रेम करना चाहताहूँ
यह जानते हुए
कि प्रेम एक चाँद है
जिसके कदमों के ठीक नीचे एक सीढी लगा दी जाये
तब भी  वह धरती पर नहीं उतरेगा
LikeShow More Reactions
Comment

अट्टहास


जब एक आदमी भूख से मर रहा था
तो वहां खूब तालियाँ बज रही थी.
जब एक स्त्री का हो रहा था बलात्कार
तब ही वहां खूब तालियाँ बज रही थी.
एक आदमी की हत्या करने के बाद भी
लोगों ने तालियाँ बजायी थी जोरों से
जिस समय में हम जी रहे थे
तालियों की गडगडाहट को ही
मान लिया गया
अपने युग का
इतिहास था
यह कैसा
वीभत्स नाटक था
जिसके अंत में
बचा
सिर्फ अट्टाहास था

पिता बनकर

पिता बनकर ही मैंने जाना
कि क्या थे मेरे पिता
क्यों वो धूप में खड़े रहे
एक वृक्ष की तरह
जीवन भर मेरे लिए
क्यों उनका छाता टूट जाता रहा बार बार
क्यों वो भीग जाते रहे
बारिश में अक्सर
फिर उन्हें जुकाम हो जाता रहा
पिता बनकर ही जाना
अस्पताल की लम्बी लाईन में लगकर
सीने में जमा कफ आखिर जाता क्यों नहीं है
बचपन में कहाँ जान पाया था
पिता को ठीक से
घर आते ही
वह क्यों बरस पड़ते थे हम सबपर
माँ को झिड़क क्यों देते थे
पिता बनकर ही जान पाया हूँ
दफ्तर से कितना अपमानित होकर
लौटना पड़ता है शाम को
पिता की फटी हुई कमीज़
का रहस्य भी जाना
दो लड़कियों का पिता बनकर ही
ड्राइंग रूम में पिता की तस्वीर लगी है आज भी
वे भी मुझसे पूछ ते हैं उसकेभीतर से अक्सर
क्या तुम एकसफल पिता बन सके
या हो मेरी तरह विफल
मैं भी कहने लगा हूँ
अपने पिता की तरह
ज़माना बहुत ख़राब है
शाम होते ही घर लौ ट जाओ बच्चों
खीझने लगाहूँ
बा तबात प र पिता की तरह
आसमान को देखता रहता हूँ चुपचाप
बरामदे में बैठा
मैं भीअपने पिता की तरह बुढा हो गयाहूँ
दोनों लड़कियां अभी कुंवारी हैं
बेटा भीबेरोजगार
जिस तरह मैं रहा बेरोजगार सालों तक
बहने जिस तरह रहीअविवाहित बहुत दिन
पिता बननेके बाद ही
मैं पिता को जान सका
जबकि बचपनमें लड़ता रहा उनसे
हे पिता
तुम माफ़ करना मुझे
तुम्हे मैं कोई ईसुख नहीं देस का
नहीं करा सका तुम्हारे कैंसर का इलाज़ ठीक से.
आखिर क्यों
इतनेसालों बाद
फूट फूटकर रो रहें हैं
तस्वीर में मेरे पिता

बुधवार, 24 फ़रवरी 2016

मुझे बोलने दो

मुझे बोलने दो
------------------
इस बुरे वक़्त में
मुझे बोलने दो
नदी के किनारे
खुले आसमान के नीचे
या जंगल में
या फिर सड़कों पर
कि मेरी आवाज़ तुम तक सुनायी दे सके

मुझे बोलने दो
कि मेरा दम घुट ता जा रहा है
बढ़ती जा रही
मेरी बेचैनियाँ
सांस फूलती जारही है
कसमसाती जा रही हैं
मेरी मुट्ठियाँ
अपनी तकलीफों को कहने दो.
मुझे बोलने दो
कि मेरे सीने में धुआं भर गया है
कोई आग लगी है मेरे भीतर.
और लपटें निकल रही हैं बाहर
अब ज़ुल्म सहा नहीं जाता है
मैं इसलिए भी बोलना चाहताहूँ
कि तुम फैला रहे हो अँधेरा
और फिर उसे रौशनी भी बता रहे हो
अपराधियों को घुमने दे रहे हो
और बेकसूरों को जेल भिजवा रहे हो
हरतरफ एक साज़िश रचवा रहे हो
मुझे बोलने दो
क्योंकि तुमने मेरी योनी में पत्थर डाल दिए हैं
मुझे फर्जी मुठभेड में न जाने कितनी बार मार गिराया है
मेरे बच्चों को भूकों मरने दिया है
मेरी बहन के साथ बलात्कार किया है
और न्याय भी कहाँ मिला है
मुझे बोलने दो
क्योंकि तुम मेरे मुंह पर ताले जड़ रहे हो
जरा देखो
आज़ादी के बाद
तुम भीतर से कितना सड रहे हो
जो कहना चाहता हूँ
कहने नहीं दे रहे हो.
हवा को भी तुम अब
ठीक से बहने नहीं देरहे हो..
आज की रात..
मुझे बोलने दो
कम से कम
एक आज़ाद मुल्क में
सच को सच
और झूठ को झूठ
तो कम से कम मुझे कहने दो..
मुझे अपने समय में
इस क्रूर इतिहास में
अपनी अनछपी किताब में
अफसानों और नज्मों में
रंगों और धुनों में
बोलने दो
पिछले चुनावमेंजीतकर
जो आये हैं नए कातिल
उन्हें कातिल
तो कहने दो..
मुझे बोलने दो
जिंदगी जीने के लिए
बोलने दो
तमाम बंद पडी खिड़कियो
को
अब खोलने दो

रविवार, 7 फ़रवरी 2016

निजी विचार

इतने सालों से वे कर रहे थे देश में दंगे
क्योंकि यह उनका निजी विचार था
हत्या का प्रस्ताव भी उनका निजी ही था
बलात्कार की योजना भी उनकी अपनी योजना थी

पार्टी का उनसे कोई लेना देना नहीं था
किसी भी नरसंहार केलिए
कार्यकारिणी में कोई प्रस्ताव
पारित नहीं हुआ आज तक
जो सार्वजनिक था
वह प्रधानमंत्री का बयांन था
जिसमे उन्होंने की थी निंदा
हालांकि निजी विचार भी उनका वही था .
यही तो हमारा दुनिया में
सबसे सुन्दर लोकतंत्र था ..

चाकू घोंप देते हो

एक तरफ तो तुम मुझे देवी बनाते हो
दूसरी तरफ मेरे साथ बलात्कार भी करते हो
एक तरफ तो तुम मुझे तालीम देते हो
दूसरी तरफ मेरे चेहरे पर एक बुर्का भी डाल देते हो.
एक तरफ तो तुम मुझ से प्यार जताते हो
दूसरी तरफ मुझे कुलटा बताते हो
एक तरफ तो मेरे सौन्दर्य की तारीफ़ करते हो
दूसरी तरफ तुम मुझे विज्ञापन में बेच भी देते हो.
एक तरफ तुम मुझे अवसर देने की बात करते हो
दूसरी तरफ तुम मेरा इस्तेमाल भी करते .. हो...
तुम को धरतीपर मैंने ही बनाया है
और
तुम मुझे ही . मंदिर मस्जिद जाने से ही रोक देते हो.
तुम अपनी कला में मेरी मुक्ति दिखाकर
मेरी पीठ में चाकू घोंप देते हो .

शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2016

ए ख़ुदा

मै वृक्ष ही बनना चाहता था
पर ऐ खुदा
तुमने मुझे पत्थर बना दिया
मैं बादल बन ना चाहता था
पर तुमने मुझे रेत बना दिया

हर जन्म में तुमने मुझे
वह नहीं बनाया जो चाहता था बन ना

चाहता था मैं खरगोश बन ना
पर तुमने मुझे शेर बना दिया
अब जंगल जंगल भटक रहा हूँ
नहीं चाहता हूँ
मेरे भीतर कोई हिंसा हो
कोई लालच
कोई वासना
कोई भूख
शांति से अब चाहता हूँ जीना
पर खुदा तुमने मुझे क्यों आदमखोर बना दिया
चाहता था एक इंसान बनना
पर क्या था मेरा कसूर
कितुमने मुझे मेरे भीतर
एक शैतान भी बना दिया .

गुरुवार, 4 फ़रवरी 2016

वसंत

वासवदत्ता !
वसंत नहीं आया
इस बार
पुकारता रहा
न जाने मैं

कितनी बार

तुम आती तो वह आता
वासवदत्ता !
तुम्हारा इंतज़ार
दरअसल
वसंत का ही इंतज़ार है
.
अब कहाँ
इस दुनिया में
हमारा खूबसूरत संसार है.
वासवदत्ता ! देख ही रही हो तुम
 अब इस जीवन में प्रेम से अधिक अत्याचार है .
.

.

वासवदत्ता और वसंत

वासवदत्ता !
वसंत नहीं आया 
इस बार 
पुकारता रहा
न जाने मैं
कितनी बार
तुम आती तो वह आता
वासवदत्ता !
तुम्हारा इंतज़ार
दरअसल 
वसंत का ही इंतज़ार है
.
अब कहाँ
इस दुनिया में
हमारा खूबसूरत संसार है.
वासवदत्ता ! देख ही रही हो तुम
 अब इस जीवन में प्रेम से अधिक अत्याचार है .
.