कितने सपने
मैं कोहरे में ही तुमसे प्यार करना चाहता था
पर इतना घना कोह्ररा है चारो तरफ
कि तुमसे प्यार नहीं कर सका
मैं तुम्हे अँधेरे में ही प्यार करना चाहता था
पर इतना अन्धेरा है शहर में
कि मैं तुम्हे अँधेरे में भी प्यार नहीं कर सका
मैं तुम्हे अब रौशनी में ही प्यार करना चाहता हूँ
पर अब रौशनी भी कहाँ रही
सिर्फ एक चकाचौंध है चारों तरफ
अब अपनी माचिस जला रहा हूँ
कि उसकी तीली की रौशनी में तुम्हे प्यार कर सकूं
और देख सकूं
कि तुम्हारी आँखों में बचे हैं
अब कितने सपने .........
विमल कुमार
मैं कोहरे में ही तुमसे प्यार करना चाहता था
पर इतना घना कोह्ररा है चारो तरफ
कि तुमसे प्यार नहीं कर सका
मैं तुम्हे अँधेरे में ही प्यार करना चाहता था
पर इतना अन्धेरा है शहर में
कि मैं तुम्हे अँधेरे में भी प्यार नहीं कर सका
मैं तुम्हे अब रौशनी में ही प्यार करना चाहता हूँ
पर अब रौशनी भी कहाँ रही
सिर्फ एक चकाचौंध है चारों तरफ
अब अपनी माचिस जला रहा हूँ
कि उसकी तीली की रौशनी में तुम्हे प्यार कर सकूं
और देख सकूं
कि तुम्हारी आँखों में बचे हैं
अब कितने सपने .........
विमल कुमार
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