मंगलवार, 19 अगस्त 2014

कितने सपने

कितने सपने

मैं कोहरे में ही तुमसे प्यार करना चाहता था
पर इतना घना कोह्ररा है चारो तरफ
कि तुमसे प्यार नहीं कर सका

मैं तुम्हे अँधेरे में ही प्यार करना चाहता था
पर इतना अन्धेरा है शहर में
कि मैं तुम्हे अँधेरे में भी प्यार नहीं कर सका

मैं तुम्हे अब रौशनी में ही प्यार करना चाहता हूँ
पर अब रौशनी भी कहाँ रही
सिर्फ एक चकाचौंध है चारों तरफ

अब अपनी माचिस जला रहा हूँ
कि उसकी तीली की रौशनी में तुम्हे प्यार कर सकूं
और देख सकूं
कि तुम्हारी आँखों में बचे हैं
अब कितने सपने .........

विमल कुमार

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें