रविवार, 25 अक्तूबर 2015

ये कैसा देश बनाया तुमने

ये  कौन सा देश  बनाया है तुमने
इतने दिनों में कि अब रूह कांप जाती है

कि कोई आता है
 और सुबह सुबह पूजा के समय ही
 गोली मार  कर चला जता है
 किसी को अचानक

यह कौन सा नक्शा खींच रहे हो तुम
नफरत की आड़ी तिरछी रेखाओं से
 खाने और पहनने की आजादी  छीनकर

ये कौन सा रंग भर रहे हो इसके भीतर
पुराने सभी रंगों को मिटाकर
कि लोग अब घबरा गएँ हैं
डरने लगे हैं भीतर ही भीतर
इसे खून समझकर

ये कौन सा पूल तुमने बनाया है
कि रात में चलते हुए इसपर
 एक लडकी की जिस्म नोच ली जाती है
और वो नदी में फेंक दी जाती है सरे आम

 ये किस तरह की योजना  बनाई है   तुमने
कि एक आदमी भूख से मर जता है
और हुकूमत इस बात को
  कबूल  भी  नहीं करती है
उसे आत्महत्या बताती है

यह कौन सा कारखाना लगाया हैतुमने
  कि इतने आदमी बेदखल हो गए हैं
इतने घर उजड गए हैं अब तक

और योनी में पत्थर ठूंस दिए जा रहे हैं


 यह कौन सा  चुनाव लड़ रहे हो तुम
कि हर शहर में हो रहे इतने दंगे
अफवाह फैला कर किये जा रहेअब  क़त्ल .

ये कौन सा रेडियो है
 जिस पर तुम हर महीने  आते हो
और एक झूठा सपना दिखाकर  चले  जाते हो


यह कौन सा राजधर्म निभा   रहे हो  तुम
फिजा में ज़हर घोलकर
कि लोग खून के प्यासे हो गए हैं
 एक दूसरे के
मज़हब ही सबसे अहम्  हो गया है
छंटनी और बेकारी  के दिनों में

 ये किस तरह की चुप्पी लगा रखी है तुमने
कि सच बोलते ही नहीं हो
सिर्फ चुनाव में हुंकार भरते  हो


ये किस तरह का मुखौटा लगा रखा है तुमने
 पिछले कई  मुखौटों को उतारकर अपने चेहरे से

अब तुम्हारा असली चेहरा सबको नज़र आने लगा है
ये लोकतंत्र भी अब लोकतंत्र  के नाम पर  शर्माने लगा
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