गुरुवार, 28 अगस्त 2014

चाँद का इतिहास

लिख रहा हूँ इन दिनों अपने चाँद का एक इतिहास
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मुझे नहीं चाहिए वो चाँद
जिसे अपने सौंदर्य को लेकर हो
इतना अभिमान
अपनी चांदनी पर हो जिसे
इतना अहंकार
मुझे तो ऐसा चाँद चाहिए था
जो हो भीतर से बहुत ही कोमल
विनम्र और इमानदार
और मिलनसार
जिसमे बची हो करुणा
और थोड़ी मनुष्यता
आँखों में एक गहरी पुकार

मुझे मालूम है
कि चाँद की कभी ऐसी फितरत नहीं
कि वो आग बबूला हो जाये किसी के सामने
वो इतना तुनक मिजाज़ भी नहीं रहा कभी
इतने गुस्से में मैंने उसे कभी देखा भी नहीं
वो तो कई बार मुझसे
प्यार में बहुत सलीके से मिलता भी रहा
उसने कई बार बंगाली मार्किट में
मेरे साथ गोलगप्पे भी खूब खाए मेरे साथ
हंसी के ठहाके भी लगाये उसने मेरे साथ
लेकिन सच पूछो तो
जब वो मुझस नाराज़ हो जाता है
मेरी तो फट के हाथ में आ जाती है
मैं चाँद का दर्द जाना चाहता हूँ
आखिर वो कौन सी घटना है
जिसने चाँद को आज ऐसा बना दिया
उसे एक पत्थर के टुकड़े में कर दिया तब्दील
उसकी आत्मा में ठोक दिया कोई कील

अब वो बात बात में हो जाता है चिडचिडा
मेरा चाँद तो ऐसा था नहीं
फिर वो क्यों आता है मेरे साथ इस तरह पेश
चाँद मुझसे दोस्ती न करे
मुझे अपना दुश्मन भी समझ ले
तो नहीं पड़ता कोई फर्क
मुझे तो चाँद का इतिहास लिखना है अपने समय में
इतिहास लिखते हुए अपने पूर्वाग्रहों से लड़ना पड़ेगा मुझे
चाँद का एक लंबा इंटरव्यू भी लेना होगा
एक सच्चे इतिहासकार के नाते
मुझे अपनी असहमतियां भी जतनी होंगी
उसकी खूबियों की तारीफ भी करनी होगी मुझे
और ये भी बताना होगा मुझे
आखिर कौन से दवाब काम कर रहे थे अपने युग के उसपर
आखिर वो क्यों नाराज़ हो जाता था
जोर जोर से चिल्लाने लगता था

क्या मैं चाँद को समझ नहीं पाया अब तक
जनता हूँ कई बार इतिहास भी लिखा जाता है गलत
कई बार इतिहासकार आरोपित करता है खुद को
मैं किस तरह लिख पाउँगा एक तटस्थ इतिहास
भले ही उसके द्वारा ठुकरा दिया गया हूँ
उसने मुझे संवाद भी बंद कर दिया है
मुझे भी चाँद को एक मनुष्य के रूप में भी देखना हो गा
जिस तरह मनुष्य की एक सीमा होती है
उसकी भी होती है
वो भी बंधा है अपने युग से
चाँद भी मजबूर है
और लाचार गुरुत्वाकर्षण के नियमों से बंधा हुआ
आसमान में तारों के बीच लटका
चाहकर भी वो नीचे उतर नहीं पाया कभी धरती को बाँहों में भरने
वो एक तारे को भी नहीं चूम पाया अपने जीवन में

उसके इतिहास को लिखते हुए

मुझे भी चाँद के साथ रात में डूब जाना होगा
तभी जान पाउँगा उसका दर्द
बिना दर्द को जाने कभी भी नहीं लिखा जा सकता
किसी चीज़ का एक सच्चा इतिहास.

विमल कुमार

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