रविवार, 8 जुलाई 2018

हत्यारे को भी नही मालूम था

हत्यारे को भी नही मालूम था एक दिन उसे फूल मालाएं पहनाई जाएंगी नही पता था बलात्कारी को कि वह सम्मानित भी किया जाएगा दंगाईयों को उम्मीद नही थी कि उनकी तारीफ में लिखे जाएंगे लेख अब सब कुछ संभव था नही था कोई आश्चर्य यह मेरा ही मुल्क था। यह मेरा ही शहर था। यह मेरी ही गली थी। यह मेरा ही मुहल्ला था कहने को अब कुछ नही बचा था शर्मिंदगी की भी हद होती है झूठ का इस कदर प्रदर्शन भी होता है सत्य का गला भी इस तरह कहीं दबता है बस एक हीउम्मीद है रात कितनी भी लम्बी हो एक दिन वह खत्म होगी ही।। विमल कुमार