बुधवार, 15 नवंबर 2017

सपने के लिए मरकर देखिये

केवल आक्सीजन ही जरुरी नहीं होता
हम सबको जीने के लिए
बहुत चीज़ें होती हैं जरुरी
जिन्दा रहने के लिए
मैं तो किसी की आवाज़ के सहारे भी जी लेता हूँ
बहुत दिनों तक जीया है
मैंने तुम्हारी आवाज़ में
एक झरने की आवाज़ सुनकर
केवल रोटी खाकर ही
भूख नहीं मिटाई जा सकती
मैंने तो किसी की चिठियाँ पढ़कर भी अपनी भूख मिटाई है
कई सालों तक अकेले कमरे में
शब्दों में भी छिपा होता है एक अजीब स्वाद
किसी की भाषा भी कर देती है तृप्त आपको
प्यास मिटाने के लिए
सिर्फ पानी ही जरुरी नहीं होता
एक चित्र को देखकर भी आपका गला तर हो सकता है
बिना बारिश के भी आप कई बार भीग जाते हैं .
जीने के भी बहुत सारे उपाय हैं
मरने की बढ़ती आशंकाओं के बीच
कभी किसी की याद के सहारे
भी जीकर देखिये
केवल आक्सीजन ही जरुरी नहीं होता जीने के लिए .
कभी किसी सपने के लिए भी मरकर भी देखिये
कितनी खुबसूरत हो जाती है तब यह जिन्दगी
Vimal Kumar के वाल से
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मरने से पहले मरने लगती हैं स्त्रियां

मरने से पहले
मरने लगती हैं स्त्रियाँ
जैसे पतझर में झरने लगती हैं पत्तियां
कहती नहीं किसी से
हम मरणासन्न हैं
ले चलो किसी अस्पताल में हमें
कोई डाक्टर भी कहाँ हैं
जो उन्हें मरने से बचा ले
मरने से पहले ही
मरने लगती हैं स्त्रियाँ
उनके पंख जल जाते हैं उड़ने से पहले
उनकी पतंगे आसमान में कट जाती हैं
उनका चाँद चमकने से पहले पीला पड जाता है
मरने से पहले मरने लगती हैं स्त्रियाँ
जैसे जन्म लेने से पहले
सूख जाती हैं कई नदियाँ
मरने से पहले ही
उनका जिस्म बर्फ बन जाता है
न लहरे उमड़ती हैं
न मछलियाँ कसमसाती हैं
न दहकता कोई चिनार बदन में
न बजता कोई सितार
मिलता कहाँ उन्हें किसी का प्यार
मरने से पहले मरने लगती हैं स्त्रियाँ
एक अंधेरी सुरंग में तब्दील होती हुई
एक खँडहर की तरह कराहती
एक जर्जर पुल की तरह उदास
हजारों ख्वाहिशें लिए हुए
कई तरह की खुश्बूओं से वंचित
अतृप्त कामनाओं के साथ जीती
बहुत सारा रहस्य अपने भीतर छिपाए हुए
बहुत सारी वेदनाओं को न बताये हुए
चिता पर जलने से पहले अंगीठी कीतरह जलती हुई
सारा धुआं अपने फेफड़े में सोखती हुई
मरने से पहले
हर युग में इस तह
मर जाती हैं स्त्रियाँ
किस ने मारा है
उन्हें कोई बता सकता है
अगर पता चले
तो कौन उसे सजा दिला सकता है
पुरुषों के स्वप्न में
बार बार जीवित होती हुई.
घर कर जाती हैं स्त्रियाँ