शनिवार, 13 सितंबर 2014

एक पुरुष केवल एक स्त्री को नहीं चूमता अपने जीवनमे

एक पुरुष केवल एक स्त्री को नहीं चूमता अपने जीवन में
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वह एक ही स्त्री थी
 क्योंकि उसके पास एक शरीर था
मेरी बाँहों में झूलने से लेकर
आसमान तक उड़ने में
उसके पास वही शरीर था
वही केश राशि वही आँखें
पर वो इस यात्रा में कई बार बदल चुकी थी
जैसे आज तक न जाने कितनी बार
उसकी बिंदी बदली थी माथे पर


वह एक ही स्त्री थी
पर कई अर्थ देती थी मुझको
कई पंख देती थी मुझको
कई रंग ,कई गंध



 मैं भी एक ही पुरुष था
क्योंकि एक ही शरीर था मेरे पास
उसे चूमने से लेकर सताने तक
एक ही शरीर,वही भुजाएं वही जंघाएँ
वही दर्प ,वही तेज
पर इस यात्रा में
मैं भी बदल चुका था कई बार
जैसे कई बार मैं अपना घर बदल चूका था
मैं भी कई अर्थ देता था
कई ध्वनियाँ   कई फूल
 कई पत्थर कई पूल

पर वो एक ही स्त्री थी हर बार बदलती हुई
कई हज़ार स्त्रियों को
अपने भीतर छिपाए
मैं  भी एक ही पुरुष था हर बार बदलता हुआ
अपने भीतर कई हज़ार पुरुषों को छुपाये
इसलिए जब वो मुझ से प्यार करती थी
तो कई हज़ार स्त्रियाँ मुझ से प्यार करती थी

जब वे शिकायत करती थी
 तो कई हज़ार स्त्रियाँ मुझ से शिकायत करती थी

जब मैं उसे चूमता था
तो कई हज़ार पुरुष उसे चुमते थे
जब मैं उसे झगड़ता था
तो कई हज़ार पुरुष उस से झागते थे

दरअसल एक स्त्री कभी एक पुरुष से प्यार नहीं करती
एक पुरुष भी केवल एक स्त्री को नहीं चूमता अपने जीवन में

विमल कुमार



मंगलवार, 2 सितंबर 2014

विषाद न दो


    न्यूज़ फ़ीड

    विषाद न दो
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    जब सारा विवाद तन को लेकर है
    तो तुम अपना मन ही दे दो
    नहीं दे सकती हो अपना मन
    तो अपना वचन ही दे दो
    अगर तुम्हे लगता है
    कि हो जायेगा तुम पर मेरा कोई अधिकार
    तो मत दो उसे
    केवल विश्वास ही दे दो
    अगर तुम्हे इसको लेकर हो
    कोई संशय
    तो मत दो इसे
    इस अँधेरे में
    थोडा उजाला ही दे दो
    अगर तुम कुछ नहीं चाहती हो देना
    तो कोई बात नहीं
    कम से कम मुझे
    जीवन का कोई उल्लास ही दे दो
    देना मैं भी तुम्हे बहुत कुछ चाहता हूँ
    अगर तुम मुझसे कुछ लेना नहीं चाहती हो
    तो कोई बात नहीं
    तुम से मेरा बना है जो कुछ भी संवाद
    वो संवाद तो बना रहने दो
    अगर नहीं कर सकती हो
    अब मुझ से कोई संवाद
    तो कोई बात नहीं
    जीवन में मुझसे
    कोई विवाद तो न रहने दो
    खुशी नहीं दे सकती हो
    तो कोई बात नहीं
    किसी बात को लेकर
    मन में कोई विषादतो न रहने दो
    विमल कुमार 

बांसुरी वादन

बांसुरी वादन
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कल ही मैंने तुम्हे देखा है
कहीं बांसुरी बजाते हुए
सुनता तो जरुर कहता 
कितनी सुरीली है
या बेसुरी
लेकिन मुझे मालूमहै
तुम एक दिन सितार भी बजाओगे
सबके सामने इसी तरह
और कुछ लोग हो जायेंगे मंत्र मुग्ध
नृत्य भी संभव है तुमसे
किसी दिन
किसी सभागार में
कुछ दिन पहले ही किसी ने बताया
तुम्हे कृष्णा का अवतार भी
गीता का उपदेश भी तुम
देने ही लगे हो इन दिनों
लेकिन जब लिखा जायेगा
भारतीय संगीत का इतिहास
तो यह जरुर कहा जायेगा
हत्या के बाद
जब कोई बजता है इस तरह बांसुरी
तो वो सुरीली नहीं सुनायी पड़ती
उसमे किसी बेवा के रोने की आवाज़ आती है
छल और प्रपंच के बाद
तो सितार भी बजाना मुश्किल
उसके भीतर से भी कराहने की आवाज़ आती है
झूठे सपनो के बाद नृत्य करना
और ही है नामुमकिन
तुम जिस धंधे में हो इतने साल
उसकी पवित्रता हो चुकी है नष्ट
तुम अपने इतिहास मेंजरूर अमर हो सकते हो
पर कला की वो उचाईं यां नहीं छू सकते कभी
क्योंकि तुमने कभी झांक कर नहीं देखा है
अपनी आत्मा में
छिपा हैं जो एक दाग
उस दाग को तुम हरगिज मिटा नहीं सकते
कभी बजा कर इस तरह
कहीं कोई बांसुरी.........
विमल कुमार

अपरिचय

 अपरिचय
तुमसे हुआ अपरिचित
तो उस वृक्ष से भी हो गया
अपरिचित
जिसके झरते पत्तों के नीचे
मिला था तुमसे पहली बार
तुमसे हुआ अपरिचित
तो फिर  नदी ने भी मुझे नहीं पहचाना मुझे
जिसकी लहरों में हमने अपने पांव भिगोए थे
साथ साथ

तुमसे हुआ अपरिचित
तो उस बेंच से भी होगया
अपरिचित
चाय के उस प्याले से भी
उस भाप से भी जो निकल रहा था
यहाँ तक कि उस हरी घास से भी
जिस पर गिरे थे दो बूँद आंसू कभी

तुमसे जब हुआ अपरिचित
तो चाँद तारों से भी होगया
जिन्हें मैंने देखा था कई  रातों में तुम्हारे साथ
इतना परिचय भी किसी से ठीक नहीं
कि जब हो जाओ अपरिचित
तो अपनी सांस और रक्त से भी हो जाओ
जैसे अपरिचित
हो गया मैं
एक दिन अपनी परछाई से भी अपरिचित
क्योंकि दो परछाई यां मिलकर कभी एक हो गयीं थी कभी
एक सांस में दो साँसे
एक रक्त में दो रक्त होने लगा था
प्रवाहित.
इतना परिचय भी ठीक नहीं
कि जब हो जाये अपरिचित
कि पास से गुजरे और
एक दूसरे को पहचान भी नहीं सके
बहुत तकलीफ देह है मनुष्य के लिए
परिचित से फिर अपरिचित 
विमल कुमार

शनिवार, 30 अगस्त 2014

नया क़र्ज़

पहले से ही थे 
मुझ पर न जाने कितने तरह के क़र्ज़ 
अब मैं किसी और का फिर से 
कर्ज़दार हो गया हूँ.

मुश्किल है मेरे सामने कि
कैसे लौटा पाउँगा उसे 

चाँद से लेकर तारों तक 
नदियों से लेकर पेड़ों तक 
धूप से लेकर बारिश तक का क़र्ज़
रहा मुझ पर बचपन से
चुकता नहीं कर पाया उसे
बाप दादों का भी कोई क़र्ज़
कहाँ उतार पाया अब तक
अब एक और क़र्ज़ आ गया है
इस बुढ़ापे में मुझ पर

तुमने कहा है मुझ से बार बार
कि ये प्रेम एक उपहार है मुझको
तुम्हारी तरफ से
लेकिन पता नहीं क्यों
लगता है मुझ को
यह तुम्हारी तो तुम्हारी अनुकम्पा है मुझ पर
जिसने मरने पहले
एक बार फिर बना दिया है मुझको.
नए सिरे से तुम्हारा क़र्ज़ दार

ओह....इसकी बोझ तले
कैसे कर पाऊंगा मैं तुमको प्यार .

विमल कुमार

शुक्रवार, 29 अगस्त 2014

वो आये मगर इतिल्ला देकर

वो आये मगर इतिल्ला देकर----
वो आती है
हर किसी के जीवन में
पर बहुत चुपके से
बिना किसी को इतिल्ला किये
अचानक ही आ धमकती है
एक बिल्ली की तरह बरामदे में
कई बार कानो कान  खबर भी नहीं होती

कई बार अंदेशा होता है
कि वो आ रही है
पर उसके आने की तारीख
या समय भी  नहीं मालूम होता

वह रात में या दिन में
या अल्सुब्बह
कभी भी किसी वक़्त आ जाती है
कई बार वो नींद में ही जाती है
जब आती है
तो घर में पड़ोस में भी सुनायी पड़ती है
रूलाई
क्या वो ज़िन्दगी से डरती है
इसलिए आती है
 उसे दबोचने चुपचाप
हर दम
हर युग में
वो इसी तरह
आती है क्रूर तरीके से
आधुनिकता या
भूमंडलीकरण का
 उस पर आज तक असर नहीं हुआ  

मुझे उसके आने का भय नहीं
कोई गम भी नहीं
क्योंकि एक दिन तो उसे आना ही है
हमसबके जीवन में
मुझे बस एक ही शिकायत है
कि वो बता कर क्यों नहीं आती
हम उसके स्वागत का कुछ इंतजाम भी तो कर लेते
कुछ अपने काम निपटा लेते
कम से कम अपनी मेज़ साफ़ कर लेते
कुछ सब्जी ला देते घर के लिए
बिजली और टेलीफ़ोन का बिल जमा कर लेते
आये वो बेशक
पर आने से पहले मेरे दरवाज़े पर एक इश्तहार चिपका ले
कि मैं आ रही हूँया टेलीफ़ोन कर ले
या मुझे एक मेल ही भेज दे
या वो किसी से सन्देश ही भिजवा दे
उसके आने से पहले
 मैं थोड़ी अपनी ज़िन्दगी तो जी लूं
उसके साथ जाने से पहले
एक अछी सी  प्यारी सी नींद तो ले लूं.
एक ख्वाब तो देख लूं

मरने से पहले .

गुरुवार, 28 अगस्त 2014

लिख रहा हूँ इन दिनों अपने चाँद का इतिहास

लिख रहा हूँ इन दिनों अपने चाँद का एक इतिहास
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मुझे नहीं चाहिए वो चाँद
जिसे अपने सौंदर्य को लेकर हो
इतना अभिमान
अपनी चांदनी पर हो जिसे
इतना अहंकार
मुझे तो ऐसा चाँद चाहिए था
जो हो भीतर से बहुत ही कोमल
विनम्र और इमानदार
और मिलनसार
जिसमे बची हो करुणा
और थोड़ी मनुष्यता
आँखों में एक गहरी पुकार

मुझे मालूम है
कि चाँद की कभी ऐसी फितरत नहीं
कि वो आग बबूला हो जाये किसी के सामने
वो इतना तुनक मिजाज़ भी नहीं रहा कभी
इतने गुस्से में मैंने उसे कभी देखा भी नहीं
वो तो कई बार मुझसे
प्यार में बहुत सलीके से मिलता भी रहा
उसने कई बार बंगाली मार्किट में
मेरे साथ गोलगप्पे भी खूब खाए मेरे साथ
हंसी के ठहाके भी लगाये उसने मेरे साथ
लेकिन सच पूछो तो
जब वो मुझस नाराज़ हो जाता है
मेरी तो फट के हाथ में आ जाती है
मैं चाँद का दर्द जाना चाहता हूँ
आखिर वो कौन सी घटना है
जिसने चाँद को आज ऐसा बना दिया
उसे एक पत्थर के टुकड़े में कर दिया तब्दील
उसकी आत्मा में ठोक दिया कोई कील

अब वो बात बात में हो जाता है चिडचिडा
मेरा चाँद तो ऐसा था नहीं
फिर वो क्यों आता है मेरे साथ इस तरह पेश
चाँद मुझसे दोस्ती न करे
मुझे अपना दुश्मन भी समझ ले
तो नहीं पड़ता कोई फर्क
मुझे तो चाँद का इतिहास लिखना है अपने समय में
इतिहास लिखते हुए अपने पूर्वाग्रहों से लड़ना पड़ेगा मुझे
चाँद का एक लंबा इंटरव्यू भी लेना होगा
एक सच्चे इतिहासकार के नाते
मुझे अपनी असहमतियां भी जतनी होंगी
उसकी खूबियों की तारीफ भी करनी होगी मुझे
और ये भी बताना होगा मुझे
आखिर कौन से दवाब काम कर रहे थे अपने युग के उसपर
आखिर वो क्यों नाराज़ हो जाता था
जोर जोर से चिल्लाने लगता था

क्या मैं चाँद को समझ नहीं पाया अब तक
जनता हूँ कई बार इतिहास भी लिखा जाता है गलत
कई बार इतिहासकार आरोपित करता है खुद को
मैं किस तरह लिख पाउँगा एक तटस्थ इतिहास
भले ही उसके द्वारा ठुकरा दिया गया हूँ
उसने मुझे संवाद भी बंद कर दिया है
मुझे भी चाँद को एक मनुष्य के रूप में भी देखना हो गा
जिस तरह मनुष्य की एक सीमा होती है
उसकी भी होती है
वो भी बंधा है अपने युग से
चाँद भी मजबूर है
और लाचार गुरुत्वाकर्षण के नियमों से बंधा हुआ
आसमान में तारों के बीच लटका
चाहकर भी वो नीचे उतर नहीं पाया कभी धरती को बाँहों में भरने
वो एक तारे को भी नहीं चूम पाया अपने जीवन में

उसके इतिहास को लिखते हुए

मुझे भी चाँद के साथ रात में डूब जाना होगा
तभी जान पाउँगा उसका दर्द
बिना दर्द को जाने कभी भी नहीं लिखा जा सकता
किसी चीज़ का एक सच्चा इतिहास.

विमल कुमार

चाँद का इतिहास

लिख रहा हूँ इन दिनों अपने चाँद का एक इतिहास
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मुझे नहीं चाहिए वो चाँद
जिसे अपने सौंदर्य को लेकर हो
इतना अभिमान
अपनी चांदनी पर हो जिसे
इतना अहंकार
मुझे तो ऐसा चाँद चाहिए था
जो हो भीतर से बहुत ही कोमल
विनम्र और इमानदार
और मिलनसार
जिसमे बची हो करुणा
और थोड़ी मनुष्यता
आँखों में एक गहरी पुकार

मुझे मालूम है
कि चाँद की कभी ऐसी फितरत नहीं
कि वो आग बबूला हो जाये किसी के सामने
वो इतना तुनक मिजाज़ भी नहीं रहा कभी
इतने गुस्से में मैंने उसे कभी देखा भी नहीं
वो तो कई बार मुझसे
प्यार में बहुत सलीके से मिलता भी रहा
उसने कई बार बंगाली मार्किट में
मेरे साथ गोलगप्पे भी खूब खाए मेरे साथ
हंसी के ठहाके भी लगाये उसने मेरे साथ
लेकिन सच पूछो तो
जब वो मुझस नाराज़ हो जाता है
मेरी तो फट के हाथ में आ जाती है
मैं चाँद का दर्द जाना चाहता हूँ
आखिर वो कौन सी घटना है
जिसने चाँद को आज ऐसा बना दिया
उसे एक पत्थर के टुकड़े में कर दिया तब्दील
उसकी आत्मा में ठोक दिया कोई कील

अब वो बात बात में हो जाता है चिडचिडा
मेरा चाँद तो ऐसा था नहीं
फिर वो क्यों आता है मेरे साथ इस तरह पेश
चाँद मुझसे दोस्ती न करे
मुझे अपना दुश्मन भी समझ ले
तो नहीं पड़ता कोई फर्क
मुझे तो चाँद का इतिहास लिखना है अपने समय में
इतिहास लिखते हुए अपने पूर्वाग्रहों से लड़ना पड़ेगा मुझे
चाँद का एक लंबा इंटरव्यू भी लेना होगा
एक सच्चे इतिहासकार के नाते
मुझे अपनी असहमतियां भी जतनी होंगी
उसकी खूबियों की तारीफ भी करनी होगी मुझे
और ये भी बताना होगा मुझे
आखिर कौन से दवाब काम कर रहे थे अपने युग के उसपर
आखिर वो क्यों नाराज़ हो जाता था
जोर जोर से चिल्लाने लगता था

क्या मैं चाँद को समझ नहीं पाया अब तक
जनता हूँ कई बार इतिहास भी लिखा जाता है गलत
कई बार इतिहासकार आरोपित करता है खुद को
मैं किस तरह लिख पाउँगा एक तटस्थ इतिहास
भले ही उसके द्वारा ठुकरा दिया गया हूँ
उसने मुझे संवाद भी बंद कर दिया है
मुझे भी चाँद को एक मनुष्य के रूप में भी देखना हो गा
जिस तरह मनुष्य की एक सीमा होती है
उसकी भी होती है
वो भी बंधा है अपने युग से
चाँद भी मजबूर है
और लाचार गुरुत्वाकर्षण के नियमों से बंधा हुआ
आसमान में तारों के बीच लटका
चाहकर भी वो नीचे उतर नहीं पाया कभी धरती को बाँहों में भरने
वो एक तारे को भी नहीं चूम पाया अपने जीवन में

उसके इतिहास को लिखते हुए

मुझे भी चाँद के साथ रात में डूब जाना होगा
तभी जान पाउँगा उसका दर्द
बिना दर्द को जाने कभी भी नहीं लिखा जा सकता
किसी चीज़ का एक सच्चा इतिहास.

विमल कुमार

बुधवार, 20 अगस्त 2014

प्रेम परिभाषा

मैं तुमसे प्रेम नहीं कर रहा था
मैं तो दरअसल सिर्फ ये बता रहा था
क्या है मेरे प्रेम की परिभाषा
क्या है उसकी शैली
 क्या है उसकी भाषा
कितना अलग है वो
अपने प्रचलित अर्थों में
कितना भिन्न
अपनी रूढ़ियों से

मैं तुमसे प्रेम नहीं कर रहा था
मैं तो बस एक कागज़ पर
 उसका नक्सा खींच रहा था
जिसे बार मिटा रहा था
अपने समय में बरसात का पानी
मैं तो उस नक्से पर जमी धूल ही अब तक हटा रहा था
इस तरह मैं एक नया प्रयोग कर रहा था
अपने समाज में

मैं तुमसे प्रेम कहाँ कर रहा था
मैं तो तुमसे मिलकर
 जीवन का नया आविष्कार कर रहा था
जिसका दम अँधेरे में रोज घुट ता जा रहा था

मैं तुमसे प्यार कहाँ कर रहा था
मैं तो सिर्फ अपने दौर की  एक कविता ही लिख रहा था
 जो आजतक  लिखी नहीं गयी मुझ से .
इतने साल सुबह सुबह लिखने के बाद भी

विमल कुमार .

मंगलवार, 19 अगस्त 2014

कितने सपने

कितने सपने

मैं कोहरे में ही तुमसे प्यार करना चाहता था
पर इतना घना कोह्ररा है चारो तरफ
कि तुमसे प्यार नहीं कर सका

मैं तुम्हे अँधेरे में ही प्यार करना चाहता था
पर इतना अन्धेरा है शहर में
कि मैं तुम्हे अँधेरे में भी प्यार नहीं कर सका

मैं तुम्हे अब रौशनी में ही प्यार करना चाहता हूँ
पर अब रौशनी भी कहाँ रही
सिर्फ एक चकाचौंध है चारों तरफ

अब अपनी माचिस जला रहा हूँ
कि उसकी तीली की रौशनी में तुम्हे प्यार कर सकूं
और देख सकूं
कि तुम्हारी आँखों में बचे हैं
अब कितने सपने .........

विमल कुमार

रविवार, 17 अगस्त 2014

मेरी शाम

  1. मेरी शाम वो नहीं थी
    जो तुम्हारी शाम है

    मेरा चाँद भी वह नहीं
    जो तुम्हारा चाँद है

    बहुत फर्क है
    तुम्हारे आसमान
    और मेरे आसमान में

    तब कैसे हो सकता है
    तुम्हारा खूबसूरत अहसास
    मेरे अहसास की तरह

    बहुत कोशिश की
    बन जाये
    दो जिस्म एक जान
    दो दृष्टि
    एक दृष्टि

    दो पेड़ आपस में मिल जाएँ भी
    तो एक पेड़ नहीं हो सकते

    कभी नहीं देखा दो फूलों को
    एक फूल बनते हुए .

    दो रेलगाड़ियों को
    आमने सामने
    एक पटरी पर चलते हुए.

    विमल कुमार .