सोमवार, 29 जून 2015

दुनियामे जीना

मैं  फिर से  इसी दुनिया में जीना चाहता हूँ
जहाँ कि  आबो हवा बहुत ख़राब हो चुकी है
नदियों का पानी जहरीला हो चुका जिस शहर  में
 समंदर में डूब रही हैं न जाने कितनी नावें
मछुआरे तूफ़ान में गायब होते जा रहे हैं जहां


हाँ मैंने इसी दुनिया में जीना चाहता हूँ
जहाँ रोज कहीं न कहीं हो रहे धमाके
मस्जिदों  में बम बिस्फोट बेगुनाहों के क़त्ल
मंदिरों में बलात्कार की घटनाएँ

इसी दुनिया में फिर से जीना चाहता हूँ
क्योंकि कहाँ जी पाया अब तक इतने दिनों तक
आधी से अधिक उम्र तो समझने में बीत गयी इस दुनिया को
 जो बचे साल उसमे  खुद को पहचान ने की कोशिश में लगा रहा
अपनी वासनाओं और लालचों से लड़ने में ही
 जिन्दगी का एक हिस्सा चला गया

इसलिए फिर से जीना चाहता हूँ
अपनी पुरानी गलतियों को ठीक करते हुए
अपनी इर्ष्या और क्रोध पर विजय पाते हुए

जीना चाहता हूँ फिर ज़िंदा होकर
अपने ही घर में
अपनी पुराणी कमीजों को बदल कर
अपनी एक नयी तस्वीर कमरे में लगाकर
बदल कर अपना नाम
अपना पता फिर से जीना चाहता हूँ

नयी दोस्तों से शुरू कर एक नया रिश्ता
नयी कलम के साथ एक नयी चिट्ठी   तुम्हे लिखते हुए
नयी आवाज़ में तुम्हे फिर से पुकारते हुए

फिर से जीना चाहता हूँ
कि कर सकूँ किसी से प्यार
बैठ सकूँ पार्क में थोड़ी देर
क्योंकि आब तक कहाँ बैठ पाया तुम्हारे साथ धुप में

इसी दुनिया में फिर से जीना चाहता हूँ
जहाँ हुआ कितनी बार अपमानित
बार बार तिरस्कृत होता रहा
हाशिये पर रहा पडा

फिर से जीना चाहता हूँ
कि कुछ करूँ नया जीवन में
नए रंग भरूं कलम में
अब तक अपने लिएही  तो जीता रहा


दुःख को अमृत समझ कर पीना चाहता हूँ.
वाकई इस बार सिर्फ तुम्हारे लिए जीना चाहता हूँ.


गुरुवार, 25 जून 2015

स्मृति मेबरसात

  स्मृति में बरसात

 करीब तीस साल बाद उस से मेरी यह चौथी मुलाक़ात थी
अगर थोडा सच कहूँ तो कायदे से मेरी पहली मुलाक़ात थी
अगर और बोलूं जरा साफ़ साफ़
तो वो मेरी मुलाक़ात भी नहीं थी
तीस साल बाद वो पूल भी अब कहाँ पूल था
जिसके नीचे मैं खडा था
टूट ते हुए आसमान के नीचे
मैं भी कहाँ वो मैं  था  
जो था पहले तीस साल
आधे बाजू की एक कमीज़ पहने
अगर आपने हुलिए का बयां करूँ
तो मैं आंधी में गिरे एक पेड़ की तरह था
उतना ही ज़र्ज़र जितना वो पूल था
उस से तीस पहले जब मिला था
तो अब वो शाम भी नहीं थी
क्योंकि इस शहर की शामें भी बदल चुकी थी
अब आसमान पर थोड़ा चाँद भी तिरछा हो गया था
तारे भी थोडा उदास हो गए थे
रोशनी भी अब कहाँ रौशनी थी
पर वो थी आज मेरे सामने
अपने रंगों और  पंखों के साथ
अपने सपनों और अपनी सुन्दर इच्छाओं के साथ
सिर्फ वक़्त ही नहीं था मेरे साथ
मेरी घड़ी भी मुझको धोखा  दे चुकी थी  
अब सिर्फ एक कागज़ था
एक कलम थी
स्याही थी
इसलिए तीस साल पहले मेरी उसकी मुलाक़ात को
तीस साल बाद की मुलाक़ात से जोड़कर देखा नहीं जा सकता था
अगर सच कहूँ तो पहली मुलाक़ात भी पहली मुलाक़ात कहाँ थी
कितना कम जान पाया था उसे आज तक
कितना कम बता पाया था उसे आज तक
कितना उसे छिपा पाया था
कितना सच अपनाउसे  सुना पाया था
कम नहीं होते हैं तीस साल जीवन के
कम नहीं होते है इतने दिन किसी मुल्क के
छह चुनाव हो चुके थे
कई पार्टियों की सरकारें आकर चली गयी थी
कई वादे सब धुआं हो चुके थे
कई घोषणायें दम थोड चुकी थीं
मैं भी पहुँच गया था एक सूखते हुए कुएं के किनारे
प्यास मेरी भी बढ़ चुकी थी
बहुत कम बची थी रात
ज्यादा अँधेरा था
बहुत कम थी सांस
हवा भी अधिक नहीं थी
बहुत कम गले में आवाज़ बची थी
तीस साल में बहुत धुल उड़ चुकी थी
भूकंप के झटके
और तूफ़ान भी आकर चले गए थे
मकडी के जले घरों में लग चुके थे
तीस साल में मेरी उस से मेरी ये चौथी मुलाक़ात थी
  पर कायदे से उससे टेलीफ़ोन पर भी मेरी कोई बात नहीं थी
बस एक मेज़ थी
काफी का प्याला था
बहार बारिश की कुछ बूंदें थी
भीतर एक दस्तक था
थोड़ी सी खिड़की खुली थी
परदे थोड़े खिसके थे
वो अचानक अजीब सी मुलाक़ात थी
 आखिर वो कितनी देर तक ही मेरे साथ थी


स्मृति में बची अब  सिर्फ
उस दिन की बरसात थी

विमल कुमार