शनिवार, 16 अगस्त 2014

नहीं बदली ये दुनिया ..

नहीं जी पाया मैं अपनी जिन्दगी
जिस तरह मैं जीना चाहता था

नहीं लिख सका मैं तुम्हे एक ख़त
जिस भाषा में मैं लिखना चाहता था


न आसमान पर उड़ सका
न नदी में तैर पाया
न तारों को छू  पाया
 न चाँद को पकड़ सका
न एक फूल की तरह खिल पाया
न एक खुशबू  की तरह बिखर पाया

नहीं हो सका प्रेम आखिरउनसे
   जिनसे मैं प्रेम करना बहुत चाहता था
नहीं बदल सका मैं खुद को
  जिस तरह मैं बदलना चहता था
नहीं देख सका वो सपना
 जिसे पूरा करना चाहता था
नहीं मिल सकी वो मौत
जिस तरह मैं मृत्यु चाहता  था .

तमाम कविताएँ लिखने के बाद भी
 लिख नहीं सका मैं  उसे  जिसे मैं लिखना चाहता था
नहीं बदली वो दुनिया जिस तरह मैं
 उसे बदला हुआ देखना चहता था .
विमल कुमार

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