अगर तुम गीता पढोगे
तो ज़ल्दी तुम्हे मिल जायेगी नौकरी
वेद पढ़ते ही गरीबी छू मंतर हो जायेगी
पुराण पढोगे तो हो सकता है
तुम्हारा घर भी बन जाये समंदर के किनारे
उपनिषद पढने से
तुम्हे मिल जाये एक खूबसूरत सी बीबी
और काला धन भी आ सकता है देश में
इसलिए कहता हूँ
तुम संस्कृत पढो
और जाप करो तुम
ऍफ़ डी आयी का मंत्र
पी पी पी का गाओ कोई गाना
गले में लटकाए रखो तुम
अमरीका का एक लाकेट
अब तुम करो दिन रात
गुजरात मॉडल की बात
बलात्कार तो होते ही रहते हैं मुल्क में
जब अर्थव्यस्था मजबूत होती है .तेजी से
किसान भी करते हैं आत्महत्याए
ये तो सबूत है कि लोकतंत्र मजबूत हो रहा है अब धीरे धीरे
क़र्ज़ से लदे
तुम जिस मुल्क के नागरिक हो
वो महाशक्ति बन ने जा रहा है
इसलिए अभी और अँधेरे में रहो
कुपोषित और अशिक्षित
इस से चमकेगी तुम्हारी किस्मत एक दिन
और दुनिया के लोग उंगली दबायेंगे दांतों तले
क्या तुमने कभी सोचा था अपने जीवन में
तुम जब भूख से मरोगे एक दिन
तो डिजिटल भारत में मरोगे
हाथ में एक मोबाइल लिए हुए
ये कितनी बड़ी उपलब्धि है तुम्हारी
क्या खाक कीहै तुमने पढ़ाई
इतनी सी बात भी नहीं समझ पाए
आजादी के इतने साल बाद भी
दुनिया में रहे तुम फीसड्डी
बन गए तुम हिन्दी के झोला छाप कवि
विमल कुमार
तो ज़ल्दी तुम्हे मिल जायेगी नौकरी
वेद पढ़ते ही गरीबी छू मंतर हो जायेगी
पुराण पढोगे तो हो सकता है
तुम्हारा घर भी बन जाये समंदर के किनारे
उपनिषद पढने से
तुम्हे मिल जाये एक खूबसूरत सी बीबी
और काला धन भी आ सकता है देश में
इसलिए कहता हूँ
तुम संस्कृत पढो
और जाप करो तुम
ऍफ़ डी आयी का मंत्र
पी पी पी का गाओ कोई गाना
गले में लटकाए रखो तुम
अमरीका का एक लाकेट
अब तुम करो दिन रात
गुजरात मॉडल की बात
बलात्कार तो होते ही रहते हैं मुल्क में
जब अर्थव्यस्था मजबूत होती है .तेजी से
किसान भी करते हैं आत्महत्याए
ये तो सबूत है कि लोकतंत्र मजबूत हो रहा है अब धीरे धीरे
क़र्ज़ से लदे
तुम जिस मुल्क के नागरिक हो
वो महाशक्ति बन ने जा रहा है
इसलिए अभी और अँधेरे में रहो
कुपोषित और अशिक्षित
इस से चमकेगी तुम्हारी किस्मत एक दिन
और दुनिया के लोग उंगली दबायेंगे दांतों तले
क्या तुमने कभी सोचा था अपने जीवन में
तुम जब भूख से मरोगे एक दिन
तो डिजिटल भारत में मरोगे
हाथ में एक मोबाइल लिए हुए
ये कितनी बड़ी उपलब्धि है तुम्हारी
क्या खाक कीहै तुमने पढ़ाई
इतनी सी बात भी नहीं समझ पाए
आजादी के इतने साल बाद भी
दुनिया में रहे तुम फीसड्डी
बन गए तुम हिन्दी के झोला छाप कवि
विमल कुमार
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें