मैं आधा नदी में था
आधा उस से बाहर
आधा रेत में फंसा था
एक शुतुरमुर्ग की तरह
आधा निकला था सर मेरा ऊपर
आधा चन्द्रमा बन गया था
तुम्हारे प्रेम में
शेष रह गया था अन्धकार में
आधा हवा में खुला था
आधा था अपने ही भीतर
क़ैद था
आधी उम्मीद बचे थी तुमसे
आधी निराशा के बीच
मैं संपूर्ण जीना चाहता था
पर आधी उम्र में ही मर गया
जब तुम्हारा आधा प्रेम भी नहीं मिला
तो आधा ही दफनाया गया
मरने के बाद
आधा अपनी कब्र से बाहर निकल
कर
अब भी छटपटाता रहता हूँ
तुमको पुकारता रहता हूँ .
विमल कुमार
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