गुरुवार, 14 अगस्त 2014

किस बात के लिए मनाऊँ आज़ादी

आखिर किस बात के लिए मनाऊँमैं अपनी आजादी
चारो तरफ मचा हाहाकार उसके लिए.
नहीं मिटेगा भ्रष्टाचार उसके लिए
नहीं थम रहा बलात्कार उसके लिए

आखिर तुम ही बताओ
किस बात के लिए मैं मनाऊँ आजादी

लूट लिया ज ब अपने ही देश को तुमने उसके लिए.
चले जाते हो गर्मी में तुम विदेश घूमने उसके लिए
इतना किया ज़ुल्म हम पर अब तक तुमने उसके लिए

तुम ही बताओ किस बात के लिए
मैं हर साल घर में तिरंगा फहराऊं

एक रस्म ओ रिवाज़ बन गया उसके लिए.
नहीं फहराया तो लग जायेगा
मेरी देशभक्ति पर दाग उसके लिये
आखिर क्यों कुछ लोग हो रहें हैं
रोज़ बाग़ बाग़ उसके लिए

आखिर किस बात के लिए मैं आजादी मनाऊँ
नहीं करू काम तो आखिर शाम को क्या खाऊँ
जब उनके खिलाफफेसबुक पर लिखूं कुछ तो पकड़ा जाऊं .
किस किस को अपनी दर्द भरी कहानी मैं सुनाऊँ

विकास विकास रोज चिल्लाने के लिए
लोकतंत्र के नाम परलोगों को बेवकूफ बनाने के लिए
हर चुनाव में रंगीन सपने दिखने के लिए
तुम खुद बता दो किस बात के लिए मनाऊँ आज़ादी

ये सिर्फ तुम्हारी आज़ादी है तुम्हे ही मुबारक हो
हमारी तो आज़ादी नहीं आयी अब तक जो हमे मुबारक हो

तुम्ही मनाओ जश्न गीत के गाओ अपनी आज़ादी
अपने ही देश में जब है अपनी भाषा गुलाम
धर्म के नाम पर होतेहों हर रोज कत्लेआम
भीख मांगते लोग सडको पर सरेआम
तुम ही बताओ कैसे मैं मनाऊँ अपनी आज़ादी


विमल कुमार

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