बुधवार, 14 फ़रवरी 2018

वेलेंटाइन डे

valentine day
---------------------
कहीं से से अश्लील नहीं थे वो चुम्बन
जब उसने कसमसाते हुए पकड़ा था
तुम्हारा हाथ
और पुराने किले की जर्जर दीवार से
तुम्हारी पीठ को सटा कर
तुम्हे चूमा था
एक बार नहीं कई बार
कहाँ था अश्लील वो चुम्बन
जब पेड़ की ओट में लिया गया था
कि सामने से आता आदमी देख न सके तुम्हे
एक ललचाई नज़रों से
कोई भी चुम्बन अश्लील नहीं होता
जब लिया गया हो प्यार में
तो फिर दूसरों को इस से क्या परेशानी
क्यों दिए जाते हैं इस तरह के फतवे
कि कोई इस तरह न चूमे एक दू सरे को
जिन्हें शर्म आती है ये देखकर कि कोई किसी को चूम रहा
तो वे बंद कर ले अपनी आँखे
पढने लगे गुरुग्रंथ या गीता
या किसी अख़बार में आँख गडा लें
कई बार वे नाक भौं सिकोड़ते हैं
भीखमंगों से चुराते हैं आँखे
पर वे क्यों देखना चाहते हैं
चुम्बन के ये दृश्य
इस बदलते हुए भारत में
ये कहते हुए कि तहजीब नहीं है ये सब
है भारतीयता के विरुद्ध और धार्मिक आचरण के
पर पूछना चाहता हूँ उनसे
कि हर साल होने वाले दंगे कितने भारतीय हैं
काले धन जमा करना कितना धार्मिक कार्य है
कितना आधुनिक है
डायन कह कर किसी को मार ना
देना नरबलि मंदिर में
इसलिए मुझे नहीं लगता कि फरवरी के महीने के बीच में
जब ठण्ड जाने लगती है और बर्फ भी गिरनी बंद हो जाती है
तो कोई किसी पार्क में एक झाड़ी के उस पार किसी को चूम ही लेता है
तो वो क्या गुनाह करता है
कि तुम त्रिशूल लेकर दौड़े चले आतेहो
किसी चहरे पर कालिख पोतने के लिए
पर तुमने आज तक उनके चेहरे पर कालिख नहीं पोती
जिसने पूरी राजनीति को अश्लील बना दिया है
ज़हर घोल दिया है समाज में
धर्म को तो और भी अश्लील बना दिया है कारोबार बनाकर
कि उसे धर्म कहने पर भी शर्म आती है मुझे
जब तुम बेरोजगार लडको को नौकरी नहीं दे सकते हो
नहीं ख़त्म कर सकते हो दहेज़ की क्रूर प्रथा
तो तुम्हे क्या हक है किसी की खुशी छीन ने का
अगर कोई किसी को किवाड़ के पीछे जाकर किसी को चूमना चाहता हो
चूमने दो उन्हें वसंत के इस मौसम में
जब फूल खिल रहें हो बगीचे में
तितलियाँ उड़ रही हों और भौरें भी मडरा रहे हो
जीने दो उन्हें पल दो पल जिन्दगी
जब तुम रोज़ अपने बयानों से
लोगों की ज़िन्दगी को नरक बना रहे हो
विमल कुमार