मंगलवार, 29 जुलाई 2014

मेरे पास कुछ भी नहीं एक ख्वाब के सिवाय

अगर मेरे पास होता एक खुला आसमान 
तो मैं तुम्हे जरूर दे देता 
उडती तुम उस पर एक चिड़िया तरह अनंत 

अगर मेरे पास होता एक चाँद 
तो मैं तुम्हे दे देता 
जन्मदिन पर एक उपहार की तरह 
जिसकी रौशनी में तुम नहां लेती एक बार 

मेरे पास एक नदी भी नहीं है 
जो मैं तुम्हे दे सकूं
कि उसकी मछलियों से तुम बात कर सको
सुना सको अपना दर्द

न ही मेरे पास कोई बादल
कि तुम्हे भिगो सके बरसात में

अगर कुछ होते पत्ते मेरे पास
तो उसकी छाव में तुम गुजार लेती ये ज़िन्दगी

लेकिन मेरे पास
न तो कोई खिड़की है
न ही दरवाजा
कि तुम उसके खोल कर देख सको बाहर का दृश्य
कि कोई ताज़ी हवा तुम्हारे पास आये थोड़ी देर के लिए

मेरे पास सिर्फ एक ख्वाब है
जो इन दिनों टूटता ही जा रहा है
इन टूटते हुए खाबों के साथ
नहीं जिया जा सकता है
कुछ और दिन

अगर वो ख्वाब सच होता
तो मैं तुम्हे उसे जरूर दे देता
एक यकीन की तरह

मेरे पास थी अगर कोई चीज़
तो सिर्फ कुछ बेचैनिया थीं
एक आग थी
एक भाषा
एक पंख था

बोलो तुम इसमें से क्या लेना चाहोगी
जिस के सहारे तुम जी सको ये ज़िन्दगी

और तुम्हारे पास क्या है
जो तुम मुझे देना चाहोगी
कि मैं कुछ देर के लिए सांस ले सकूं
और मेरा दम घुटने से बच सके किसी तरह
किसी तरह जी सकूं मैं भी
अपनी मृत्यु के आने से पहले .

विमल कुमार .

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