गुरुवार, 10 जुलाई 2014

हत्यारा पति

हत्यारा पति
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मैं ही हत्यारा हूँ
अपनी पत्नी का
मैंने  पिस्तौल सो कोई गोली नहीं  दागी है
न ही चाकूयों  से किया उस पर कोई वार
न ही गला दबाया है
न ही खाने में मिलाया ज़हर रवि थरूर की तरह
पर है ही हत्यारा हूँ
अपनी पत्नी का
और अपना जुर्म कबूल करता हूँ

किसी ने नहीं देखा मुझे उसकी हत्या करते हुए
मैं ही हूँ उसकी हत्या का चश्मदीद गवाह
पर जनता हूँ जुर्म कबूल करने से सजा कम नहीं होगी
लेकिन मैं तो यह भी बताना चाहता हूँ
कि अब भी उस से करता हूँ पागलों की तरह प्यार
बाँहों में उसे भीचता रहा लहरों की तरह
चूमता रहा हवाओं की तरह उसे
लिपटा रहा बादलों की तरह उस से
खींच  लाया था उसे बाहर  एक डूबती नाव  की तरह
नींद में सपनो के करीब
आसमान में उड़ते पंखों में बांध लिया था मैंने उसे
वो वाकई चाँद थी
जिस पर नहीं थी धब्बे कोई
पर मैं ही बेखबर रहा उसकी सादगी और सौंदर्य से
और धीरे धीरे करना लगा उसकी हत्या
वो कई बार उलाहने देती हुई
रात में बिस्तर से उठ कर रोते हुए
कहती थी मुझसे प्यार करते हुए –आखिर तुम मेरी जान क्यों ले रहे हो इस तरह
कौन सो ज़हर देते हो पीने  के लिए रोज़ दावा की तरह
क्या वो मुझे समझ नहीं पायी थी इसलिए करती रही इस तरह कि शिकायतें मुझ से
या मैं ही उसे ठीक से समझ नहीं पाया
और धीरे धीरे करता रहा उसकी हत्या
छीनता रहा उसकी सांसे हर पल अपनी सांसो के लिए
फिर उसकी आजादी अपने सुख के लिए
मैं अब मान लेता हूँ
कि मैं ही हूँ हत्यारा
मुझे मान भी लेना चाहिए अगर मेरी कोई ज़मीर बची है इस चल प्रपंच के  युग में
पर एक बात मुझे कहनी है
हत्या कोई और करता है हर वारदात में
असली हत्यारा कोई और होता है
वो कभी नहीं आता पकड़ में
हर बार कोई दूसरा आदमी पकड़ लिया जाता है
क्या मेरे भीतर भी छिपा है कोई दूसरा आदमी
जिसने नहीं की  है उसकी हत्या
पर पुलिस ने उसे ही पकड़ लिया है
मेरी पत्नी मर चुकी है इसलिए वो ये बात कह नहीं सकती
कि रात में जो आदमी सोता था उसके साथ वो मेरा दूसरा आदमी था .
वही सबसे अधिक असंतुष्ट था
वही उसे किसी सभा समारोह में ले जाता था
अगर कोई शिकायत थी तो उसे ही
वो कब की मर चुकी थी और अगर जिन्दा रही शादी के बाद  तो  अपने बच्चे के लिए ही
ज़ाहिर है मैं कितना दूं
तर्क अपने पक्ष में, दूं  सफाई, अपनी दलीलें
पर कोई यकीन नहीं करेगा कि मैं हत्या रा नहीं हूँ
मेरी हथेलियों पर खून के निशान नहीं
 न ही पिस्तौल पर उँगलियों के निशान इसके बावजूद  मैं अब चुपचाप स्वीकार  लेता हूँ
मैं ही हूँ हत्यारा अपनी पत्नी का
सजा मुझे ही मिलनी चाहिए
लेकिन मैं अपने युग से
बस एक  सवाल  जरूर पूछना चाहता हूँ
जब मैं उसे लाया था ब्याह कर
तो जी जान से करता था प्यार
पर इतने सालों में एक महानगर में संघर्ष करते करते
कैसे बन गया मैं  अपनी पत्नी का हत्यारा
किसने बनाया मुझे एक दिन
इंसान से
इस तरह एक
हत्यारा .....
जिसने बिना ज़हर दिए
बिना गला दबाये
 बिना गोली चलाये की अपनी पत्नी की हत्या....
विमल कुमार







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