सोमवार, 7 जुलाई 2014

चाहती हूँ करना तुमसे प्यार

चाहती हूँ तुमसे मैं  करना प्यार  
लिपटना भी तुमसे
लहरों की तरह
खिलना एक फूल की तरह
चमकाना एक तारे की मानिंद

पर रोटियां सेंकते हुए आग में   
धुएं में घिर गए मेरे सपने
कपडे धोते धोते
सर्फ़ और बाल्टी में हो गयी  तब्दील
रसोई घर में ही मे हो गए न जाने कब मेरे बाल  सफ़ेद  
 धूप में पिघल गए
आँखों के काज़ल  

चाहती हूँ  बिस्तर पर मैं भी कर लूं सांसे गर्म 
पर बुखार से तपते बच्चे को दवा कौन देगा 
कौन बनाएगा सुबह उठकर नाश्ता सबके लिए 

जानती  हूँ बहुत शिकायतें हैं मुझे तुमसे
 वाजिब भी  है
उनमें कुछ



किसे नहीं चाहिए थोडा प्यार जिंदा रहने के लिए
लेकिन सब्जी काटते काटते  एक चाकू में बदल गयी हूँ
चिडी चिडी हो गयी हूँ
थोड़ी बहुत

चाहती हूँ मैं  भी इस ज़िन्दगी में
अपने लिए कुछ खुशियाँ
मालूम है तुम खोज रहे 
देख रहे हो कोई सपना
तुम्हे मिल भी जायेगी
 कहीं किसी पेड़ की  कोई छाहँ
किसी नदी में  बुझ जायेगी तुम्हारी प्यास

लेकिन जब चाह कर भी  नहींकर सकी तुमसे प्यार 
तो फिर  शिकायत  किस बात की तुमसे
मेरा तो बस एक ही सवाल है

 भरी जवानी में जब  हो जाये  बूढ़ी  एक स्त्री
 तो कौन करता  है उससे प्यार
 कितना  अलग है
दरअसल मेरे लिए
तुमने जो बनाया है
 ये बहुरुपिया  संसार
.
विमल कुमार .


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