चाहती हूँ तुमसे मैं करना प्यार
लिपटना भी तुमसे
लहरों की तरह
खिलना एक फूल की तरह
चमकाना एक तारे की मानिंद
पर रोटियां सेंकते हुए आग
में
धुएं में घिर गए मेरे सपने
कपडे धोते धोते
सर्फ़ और बाल्टी में हो
गयी तब्दील
रसोई घर में ही मे हो गए न
जाने कब मेरे बाल सफ़ेद
धूप में पिघल गए
आँखों के काज़ल
चाहती हूँ बिस्तर पर मैं भी कर लूं सांसे गर्म
पर बुखार से तपते बच्चे को
दवा कौन देगा
कौन बनाएगा सुबह उठकर
नाश्ता सबके लिए
जानती हूँ बहुत शिकायतें हैं मुझे तुमसे
वाजिब भी है
उनमें कुछ
किसे नहीं चाहिए थोडा प्यार
जिंदा रहने के लिए
लेकिन सब्जी काटते
काटते एक चाकू में बदल गयी हूँ
चिडी चिडी हो गयी हूँ
थोड़ी बहुत
चाहती हूँ मैं भी इस ज़िन्दगी में
अपने लिए कुछ खुशियाँ
मालूम है तुम खोज रहे
देख रहे हो कोई सपना
तुम्हे मिल भी जायेगी
कहीं किसी पेड़ की कोई छाहँ
किसी नदी में बुझ जायेगी तुम्हारी प्यास
लेकिन जब चाह कर भी नहींकर सकी तुमसे प्यार
तो फिर शिकायत किस बात की तुमसे
मेरा तो बस एक ही सवाल है
भरी जवानी में जब हो जाये बूढ़ी एक
स्त्री
तो कौन करता
है उससे प्यार
कितना अलग
है
दरअसल मेरे लिए
तुमने जो बनाया है
ये बहुरुपिया
संसार
.
विमल कुमार .
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