रविवार, 6 जुलाई 2014

एक आस

कल तक यह नदी
खिल खिला कर हंस रही थी
इस से पहले वो एक चिड़िया थी
उड़ रही थी आसमान में
खुश था मैं भी बहुत
कि चेहरे पर उसके उल्लास है .
हुआ थोडा बेचैन
जब बताया किसी ने
कि आजकल वो बहुत उदास है
कितनी बार कहा उस से
आ जाओ थोडा करीब मेरे
बता तो दो मुझे- आखिर क्या बात है
पता नहीं क्यों वो मुझ से नाराज़ थी
कि कभी नहीं आयी मेरे पास है
अगर करता हूँ उसे वाकई प्यार
तो मिट जाये सारे दुःख उसके
अपनी बची खुची ज़िन्दगी में
अब बस यही
बची एक आस है.
.
विमल कुमार

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