वह कौन थी जो आई थी अचानक मेरे पास बादलों के पंख लगाए एक धुँधली शाम की चादर लपेटे हाथ में एक जलती हुई तीली लिए कुछ रोशनी मुझे देने के लिए देने के लिए कोई ताकत कोई उम्मीद जीने के लिए जब बाहर बहुत अँधेरा था और शोर यहाँ से वहाँ तक
चाहती तो वह नहीं भी आ सकती थी कोई बहाना बना सकती थी अपनी व्यस्तता का तबीयत खराब होने का पर उसने एक निर्णय लिया था तमाम मतभेदों और उलझनों के बीच कि मरीज को देखने जाना ही चाहिए वैसे तो, मैं उसका पुराना मरीज था और यह बात उसे अच्छी तरह मालूम थी मैं तो एक बूढ़े पेड़ की तरह अपने घर में झरते पत्तों के बीच किसी तरह जी ही रहा था और वह वही तीली लेकर आई थी मुझे जिंदा करने के लिए जो एक रात मैंने उसे दी थी तूफान में लड़ने के लिए 60 सीढ़ियाँ चढ़ कर चौथी मंजिल पर आई थी क्योंकि तब लिफ्ट खराब हो गई थी
वह कौन थी
जो आई थी, सफेद साड़ी में माथे पर एक छोटी सी बिंदी लगाए अपनी खाँसी और बलगम और जलन सीने में छिपाए हुए अपने टूटे हुए सपनों को अपने जख्मों को मेरी हर निगाह से बचाए हुए
वह कौन थी जो आई थी कुछ खुशबू, कुछ तसवीरें और कुछ नीले फूल लिए अपने आँचल में छिपाए
क्या वह आई थी यह जताने कि उसे अभी भी भरोसा है मनुष्यता पर इस बाजार के युग में और वह इस शहर के एक बड़े कारखाने में काम करते हुए अभी तक एक मशीन में तब्दील नहीं हो पाई है
उसके भीतर अभी भी जिंदा हैं कुछ मछलियाँ, कुछ सीपियाँ तैरती हैं और लहरें मचलती हैं वह पत्थर नहीं बनी है नहीं बनी है रेत नहीं काठ या सीमेंट की कोई मूर्ति
फिर वह कौन थी जो आई थी मुझसे कई बार झगड़े करने के बाद कई बार नाराज होने के बाद कई बार बातचीत तोड़ देने के बाद कई बार मेरी किताबें लौटा देने के बाद क्या वह यह बताने आई थी कि हर रिश्ते का एक लोकतंत्र होता है
वह कौन थी जो आई थी मुझे गहरा सुकून देने के लिए देने के लिए एक विश्वास एक भरोसा जबकि वह मुझसे झगड़ती रही हर बार मैं बोझ बन गया हूँ उसके लिए मैंने भी उसे बहुत तकलीफ दी थी खुशियाँ देने के उपक्रम में
वह क्यों आई थी इतनी दूर चल कर इस बियाबान में जहाँ परिंदे नहीं उड़ते हुए आते थे जहाँ ऑटोवाले भी मना कर देते थे और रिक्शा या टमटम मिलने का सवाल ही नहीं उठता
क्या जरूरत थी उसे यह औपचारिकता निभाने की वह नहीं भी निभा सकती थी वह हमेशा के लिए तोड़ सकती थी यह रिश्ता जो अनजाने में बहुत खूबसूरत बन जाने के बाद दिन प्रतिदिन जटिल भी होने लगा था पर वह कौन थी जो आई थी कनुप्रिया बन कर बन कर देवयानी या इला या आल्या या फिर आयरा हवा बन कर आई थी वह
तारे बन कर आई थी वह कुछ देर के लिए धूप बन कर एक चिड़िया बन कर एक किताब बन कर एक पुल बन कर मेरे लिए वह शब्द और रंग बन कर आई थी पह वह चली भी गई एक तितली बन कर रूई की तरह उड़ कर हवा में
वह कौन थी जिसे इतनी बार मिलने के बाद भी मैं पहचान नहीं पाया था क्या मैं ही धोखा खा गया था क्या मुझे बिल्कुल यकीन नहीं था वह आई थी हाड़ मांस की औरत के रुप में पर आने के बाद वह मेरे लिए एक फरिश्ता बन गई थी एक जल परी और उस दिन के बाद से उसको जानने का रहस्य और गहरा हो गया था जितना उसको जानने की कोशिश करता हूँ उतना उसे जान नहीं पाता हूँ मेरे लिए वह आज तक एक पहेली ही है उस दिन भी ऐसा ही हुआ था जब वह आई तो मुझे लगा मैं बहुत कुछ जान गया हूँ उसके बारे में
पर मुझे कहाँ पता था कि वह खुद भी लगा रही है अस्पतालों के चक्कर पर उसके जाने के बाद मुझे लगता है अभी तक तो मैं उसकी परछाई को भी ठीक से नहीं पहचान पाया हूँ उसके पके हुए बालों को नहीं जान पाया हूँ उसके दुख को अभी नहीं पढ़ पाया हूँ
वह कौन थी जो मुझसे अचानक मिलने के बाद आसमान में तिरोहित हो गई और मैं उसे एक जुगनू की तरह पकड़ने के लिए उठा अपना हाथ बढ़ा कर खिड़की से बाहर
वह मूर्त से अमूर्तन की तरफ लगातार बढ़ती हुई विलीन हो गई हवा में वह आई थी नीचे से मुझे टेलीफोन करके और मैं टेलीफोन का चोगा हाथ में लिए उसी तरह बैठा हूँ उकड़ूँ अस्पताल के बिस्तर पर एक बार फिर उसका इंतजार करता हुआ
इस बार वह आई तो मैं जरूर पूछूँगा
तुम हो कौन? जो कभी-कभी आती हो किसी की जिंदगी में बारिश की एक बूँद बन कर और आती हो तो किसी की जिंदगी में क्यों आती हो इस तरह?
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