गुरुवार, 3 अप्रैल 2014

चाहता था जिस तरह जीना

चाहता था जिस तरह मै जीना.
जी न सका

जब चाहां  मरना
तो मर भी न सका
जिनका दुःख चाहता था हरना
हर भी न सका

क्या लिखूं अब
कुछ समझ में नहीं आता
जो चाहता  था लिखना
 अब तक लिख भी न सका

जो चाहता था तुमसे कहना
ज़िन्दगी  भर कह भी न सका

मेरे सामने ही बिक गया मेरा देश
रह गया मै ये सब देखता
बहुत कुछ किया कि कुछ बच जाये
,हाय, फिर भी कुछ ऐसा  न कर सका


बहुत चाहा इस वक़्त ने मुझे  डराना
फिर भी मै उस से , डर न सका



विमल कुमार.

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