मंगलवार, 2 सितंबर 2014

बांसुरी वादन

बांसुरी वादन
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कल ही मैंने तुम्हे देखा है
कहीं बांसुरी बजाते हुए
सुनता तो जरुर कहता 
कितनी सुरीली है
या बेसुरी
लेकिन मुझे मालूमहै
तुम एक दिन सितार भी बजाओगे
सबके सामने इसी तरह
और कुछ लोग हो जायेंगे मंत्र मुग्ध
नृत्य भी संभव है तुमसे
किसी दिन
किसी सभागार में
कुछ दिन पहले ही किसी ने बताया
तुम्हे कृष्णा का अवतार भी
गीता का उपदेश भी तुम
देने ही लगे हो इन दिनों
लेकिन जब लिखा जायेगा
भारतीय संगीत का इतिहास
तो यह जरुर कहा जायेगा
हत्या के बाद
जब कोई बजता है इस तरह बांसुरी
तो वो सुरीली नहीं सुनायी पड़ती
उसमे किसी बेवा के रोने की आवाज़ आती है
छल और प्रपंच के बाद
तो सितार भी बजाना मुश्किल
उसके भीतर से भी कराहने की आवाज़ आती है
झूठे सपनो के बाद नृत्य करना
और ही है नामुमकिन
तुम जिस धंधे में हो इतने साल
उसकी पवित्रता हो चुकी है नष्ट
तुम अपने इतिहास मेंजरूर अमर हो सकते हो
पर कला की वो उचाईं यां नहीं छू सकते कभी
क्योंकि तुमने कभी झांक कर नहीं देखा है
अपनी आत्मा में
छिपा हैं जो एक दाग
उस दाग को तुम हरगिज मिटा नहीं सकते
कभी बजा कर इस तरह
कहीं कोई बांसुरी.........
विमल कुमार

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