सोचता हूँ जारी कर दूं अपना
एक शोक सन्देश पहले ही
पता नहीं तुम करोगे
या नहीं
ताकत के खेल में
नहीं रहा कभी मै
नहीं कर सका किसी को उपकृत
जीवन में
कि वो करे मेरे लिए शोक
न ही किया ऐसा कोई काम
कि दुनिया रखे याद मुझे
पर शोक सन्देश जारी करना
क्या जरूरी है
जब मर जाते हैं
हजारों लोग बाढ़ में हर साल
भूकंप में दबकर
कौन जानता है उन्हें
कौन करता हैयाद
उनके नाम तो कोई बताता भी नहीं
कोई दिखाता भी नहीं
उनकी तस्वीर
बस लाशों की एक भीड़ सी दिखती है
इसलिए सोचता हूँ
त्याग दूं
शोक सन्देश का विचार
क्या बिना शोक के नहीं रह सकता जिंदा
मै इतिहास में
जब शोक सभाएं भी की जा रही हैं
प्रायोजित
बेशर्मी की हद तक .
विमल कुमार
एक शोक सन्देश पहले ही
पता नहीं तुम करोगे
या नहीं
ताकत के खेल में
नहीं रहा कभी मै
नहीं कर सका किसी को उपकृत
जीवन में
कि वो करे मेरे लिए शोक
न ही किया ऐसा कोई काम
कि दुनिया रखे याद मुझे
पर शोक सन्देश जारी करना
क्या जरूरी है
जब मर जाते हैं
हजारों लोग बाढ़ में हर साल
भूकंप में दबकर
कौन जानता है उन्हें
कौन करता हैयाद
उनके नाम तो कोई बताता भी नहीं
कोई दिखाता भी नहीं
उनकी तस्वीर
बस लाशों की एक भीड़ सी दिखती है
इसलिए सोचता हूँ
त्याग दूं
शोक सन्देश का विचार
क्या बिना शोक के नहीं रह सकता जिंदा
मै इतिहास में
जब शोक सभाएं भी की जा रही हैं
प्रायोजित
बेशर्मी की हद तक .
विमल कुमार
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