गुरुवार, 11 जुलाई 2019

वासवदत्ता

वासवदत्ता!
इतने दिनों के बाद तुम आज आयी हो
जब आग लग चुकी मेरे शहर में
जल कर राख हो चूका मेरा शयन कक्ष

नदियाँ सब सुख गयी
मछलियाँ सब छटपटा कर मर गईं

आयी हो तुम भी लडखडाते हुए

पैरों की हड्डी तुम्हारी टूट चुकी है

कितने दिनों तक याद करता रहा वासवदत्ता
तुम्हे नही मालूम
कितने शहरों में कितनी सड़कों पर
कितनी शामों को
कितनी रातों को
खोजता रहा तुमको

अब आयी हो तुम्हारी जिस्म में खरोंचे है
खून से भीगे हैं तुम्हारे अन्तः वस्त्र
नोच लिया है तुम्हे भेडिये ने
गिद्धों ने भी नही छोड़ा है

वासव दत्ता
तुम इतिहास के बहुत बुरे दौर में आयी हो
मेरी सांस जब उखड़ने लगी है.
नौकरी जब छुट गयी है
आसमान से बरस रहे अंगारे

वासव दत्ता
तुम मुझे क्या सौंपने आयी हो
क्या देने आयी हो
एक चिराग लेकर अपने हाथो में
कागज़ की एक नाव लिए आयी हो

अपनी साँसों में किसी सुबह की खुशबू लिए
किसी सपने और उम्मीद की किरण लिए तुम आयी हो

बहुत देर हो चुकी है
आततायी चरों तरफ से आ गये हैं.
घोड़े हिनहिना लगे हैं.रथ का पहिया धंस गया है तलवारें तन चुकी है

वासवदत्ता
तुम अपनी मृत्य से
मुझे जीवन देने आयी हो
लेकिन मैंने भी तय कर लिया है
मैं भी मरकर तुम्हे एक रौशनी दूंगा

अपनी सांसकी जिन्दगी दूंगा

वासव दत्ता
तुम मुझ से इस जंगल में मिलने आयी हो
जहाँ सियार बोल रहे हैंऔर एक चाँद चमक रहा है

वासव दत्ता
तुम दर असल एक फुल बन कर आयी है
जिसके इस गर्मी में झुलस ने की आशंका बढ़ गयी है..
तुम जिस चीज़ के लिए आयी हो
खत्म होती जा रही है तेजी से इस दुनिया में

इस बार तुम आयी हो
तो लगता ही नही
कि तुम आयी हो .

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