यह देश अब रहने लायक नहीं रहा
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जब मुम्बई की लोकल में चढ़ ता हूँ
या दिल्ली की मेट्रो में
भेड बकरियों की तरह ठूंस दिया जाता हूँ
निकलता हूँ बाहर जब चिथड़े चिथड़े होकर
तो यही सोचता हूँ
कि अब यह देश रहने लायक नहीं रहा
लेकिन क्या करूँ
इसी देश में रहता हूँ
रोज़ जीता हूँ
रोज मरता हूँ
जब कैंसर के इलाज के लिए भी
धक्के खता हूँ
और आपरेशन के इंतज़ार में
मर जाता हूँ
तो सोचता हूँ
कि यह देश रहने लायक नहीं रहा
अपना इलाज भी नहीं करा सकता
किसी सरकारी अस्पताल में
लेकिन कहाँ जाऊं
इसी देश में रहता हूँ
रोज़ जीता हूँ
जनगणमन कहते हुए मरता हूँ
अखबार में पढता हूँ
कि तीन करोड़ से अधिक मुकदमे हैं लंबित
बीस साल से एक विचाराधीन कैदी
है न्याय के इंतज़ार में है
दो हज़ार बेगुनाह क़त्ल कर दिए जाते हैं
और किसी मुजरिम को फंसी नहीं होती
और होती है किसी को
तो बाईस साल की सजा काट लेने के बाद
तो मैं सोचता हूँ
ये देश अब रहने लायक नहीं रहा
लेकिन इसी देश में रहता हूँ
रोज़ दफ्तर जाता हूँ
दफ्तर से आकर घर में मरता हूँ
सांस रहती हैअटकी
कि मेरे बच्चे का अपहरण न हो जाये
मेरी बेटी के साथकहीं बलात्कार न हो जाये
एक दिन जब जाना
निर्भया की घटना के बाद
सत्तर हज़ार मामले बलात्कार के हुए दर्ज
तब सोचता हूँ फिर
ये देश अब रहने लायक नहीं रहा
लेकिन क्या करूँ
कहाँ जाऊं
जब पांच लाख किसानो की आत्महत्या के बाद
उनके घर के लोग
इसी देश में जी रहे है रोते बिलखते हए
एक उम्मीद के साथ
मैं भी ज़िंदा हूँ किसी तरह
इस उम्मीद के साथ
अब तक कि कोई सूरत बदलेगी
मुल्क रहने लायक हो जायेगा एक दिन
लेकिन ये अंदेशा बना रहता है
कि किसी नरसंहार में मैं भी कहीं न मार दिया जाऊं
या नौकरी से निकाल न दिया जाऊं
यह कहकर कि नक्सालियों से दोस्ती है मेरी
लेकिन जब देखता हूँ
कि इस देश में लोग जी रहे हैं
अपने अधकारों के लिए लड़ते हुए
तो थोड़ी ताक़त मुझे भी मिलती है
और फिर मैं भी इसी देश में जीने लगता हूँ
ये जानते हुए कि अब यह देश रहने लायक नहीं रहा
जबकि मैंने भी बहुत कोशिश की ये थोडा बदल जाये
.पर ये बदलता भी नहीं है किसी भी चुनाव के बाद
क्योंकि मेरे मोहल्ले का इमानदार आदमी हर बार हार जाता है
झूटे सपने दिखानेवाले लोग अक्सर जीत जाते हैं
इसलिए मैं कहता हूँ झल्लाकर
अब ये देश रहने लायक नहीं रहा
अगले दिन कोई आता है मोटरसाइकिल पर
और मुझे दिन दहाड़े गोली मार कर चला जता है
यह कहते हुए
कि तुम भारत माता की इस तरह
तौहीन नहीं करसकते हो
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जब मुम्बई की लोकल में चढ़ ता हूँ
या दिल्ली की मेट्रो में
भेड बकरियों की तरह ठूंस दिया जाता हूँ
निकलता हूँ बाहर जब चिथड़े चिथड़े होकर
तो यही सोचता हूँ
कि अब यह देश रहने लायक नहीं रहा
लेकिन क्या करूँ
इसी देश में रहता हूँ
रोज़ जीता हूँ
रोज मरता हूँ
जब कैंसर के इलाज के लिए भी
धक्के खता हूँ
और आपरेशन के इंतज़ार में
मर जाता हूँ
तो सोचता हूँ
कि यह देश रहने लायक नहीं रहा
अपना इलाज भी नहीं करा सकता
किसी सरकारी अस्पताल में
लेकिन कहाँ जाऊं
इसी देश में रहता हूँ
रोज़ जीता हूँ
जनगणमन कहते हुए मरता हूँ
अखबार में पढता हूँ
कि तीन करोड़ से अधिक मुकदमे हैं लंबित
बीस साल से एक विचाराधीन कैदी
है न्याय के इंतज़ार में है
दो हज़ार बेगुनाह क़त्ल कर दिए जाते हैं
और किसी मुजरिम को फंसी नहीं होती
और होती है किसी को
तो बाईस साल की सजा काट लेने के बाद
तो मैं सोचता हूँ
ये देश अब रहने लायक नहीं रहा
लेकिन इसी देश में रहता हूँ
रोज़ दफ्तर जाता हूँ
दफ्तर से आकर घर में मरता हूँ
सांस रहती हैअटकी
कि मेरे बच्चे का अपहरण न हो जाये
मेरी बेटी के साथकहीं बलात्कार न हो जाये
एक दिन जब जाना
निर्भया की घटना के बाद
सत्तर हज़ार मामले बलात्कार के हुए दर्ज
तब सोचता हूँ फिर
ये देश अब रहने लायक नहीं रहा
लेकिन क्या करूँ
कहाँ जाऊं
जब पांच लाख किसानो की आत्महत्या के बाद
उनके घर के लोग
इसी देश में जी रहे है रोते बिलखते हए
एक उम्मीद के साथ
मैं भी ज़िंदा हूँ किसी तरह
इस उम्मीद के साथ
अब तक कि कोई सूरत बदलेगी
मुल्क रहने लायक हो जायेगा एक दिन
लेकिन ये अंदेशा बना रहता है
कि किसी नरसंहार में मैं भी कहीं न मार दिया जाऊं
या नौकरी से निकाल न दिया जाऊं
यह कहकर कि नक्सालियों से दोस्ती है मेरी
लेकिन जब देखता हूँ
कि इस देश में लोग जी रहे हैं
अपने अधकारों के लिए लड़ते हुए
तो थोड़ी ताक़त मुझे भी मिलती है
और फिर मैं भी इसी देश में जीने लगता हूँ
ये जानते हुए कि अब यह देश रहने लायक नहीं रहा
जबकि मैंने भी बहुत कोशिश की ये थोडा बदल जाये
.पर ये बदलता भी नहीं है किसी भी चुनाव के बाद
क्योंकि मेरे मोहल्ले का इमानदार आदमी हर बार हार जाता है
झूटे सपने दिखानेवाले लोग अक्सर जीत जाते हैं
इसलिए मैं कहता हूँ झल्लाकर
अब ये देश रहने लायक नहीं रहा
अगले दिन कोई आता है मोटरसाइकिल पर
और मुझे दिन दहाड़े गोली मार कर चला जता है
यह कहते हुए
कि तुम भारत माता की इस तरह
तौहीन नहीं करसकते हो
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