गुरुवार, 10 सितंबर 2015

क्या क्या नहीं सीखा मैंने

क्या क्या नहीं सीखा था मैंने
चाय बनाते बनाते
सब से पहले यही सीखा था
 मजमे लगाने की कला
फिर सीखी  हाथ चमका कर
 बोलने की शैली

चाय बनाते बनाते ही जाना  था मैंने
जब पानी और चीनी में अंतर है 
तो 
दो कौमों में भी है  बहुत फर्क

अलग है भाषा और लिपि
 तो वे एक कैसे हो सकते हैं
फिर ये भी सीखा
धर्म की बुनियाद से ही होगा विकास मुल्क का
सीखी मैंने  चेहरे पर मुखौटे लगाने की कला  
यह भी सीखा मैंने
जरूरत पड़ने पर गिरगिट की तरह रंग भी बदला जा सकता है


चाय बनाते हुए ही मैंने सीखा उसे कैसे बेचा भी जाता है
फिर पकेजिंग की कला में निष्णात हो गया
नाम बदल कर उसे बेचने में उस्ताद हो गया

चाय बनाते बनाते मानवता और इमानदारी पर भाषण देना भी सीख गया
सीख लिया कि वक़्त पड़ने पर
 कैसे अपना उल्लू सीधा किया जा ता है
और बहुत कुछ सीखा
जिसकी एक लम्बी फेहरिश्त जारी भी की जा सकती है

चाय बनाते बनाते देश को बेचने की तरकीब भी सीख गया मैं
अमीरों के विकास को
 गरीबों के विकाश की शक्ल में पेश करना भी सीख गया


चाय बनाते हुए हिन्दी तो सीखी ही
प्रोम्टर पर अंग्रेजी पढना भी सीख लिया  मैंने  
टिकेट बाँटने का गुर भी सीखा
सब कुछ सीख लिया मैंने
पर एक चीज़ नहीं सीख पाया
कि जिसके कारण लोग धीरे धीरे मेरी हकीकत जान ने लगे है 
मेरी कलाई अब खुलने लगी है
पर चुनाव जीतने की कला से
 मुझे नहीं कर सकता कोई वंचित 
 सच की तरह  झूठ बोलने की महारत से
 मैं बदल सकता हूँ इस देश को
जिसकी कल्पना आपने नहीं की होगी कभी
लेकिन जब तक तुम लोग करोगे इंतज़ार 
 कि किस तरह   उतरता हैमेरा   जादू .
तबतक  चाय की चुस्कियों में  फैल   चुका .  होगा ज़हर 




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