शनिवार, 18 जुलाई 2015

कितनी बार वो मरी थी

 कितनी बार वो मरी  थी 

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वो मरी थी
तो एक नाव की तरह ही डूब कर मरी थी
अपनी बोझसे अधिक
मुसाफिरों के बोझ से
वो मरी थी 
तो तारों की त रह
टूट कर ही मरी थी
जितनीथी उसकेपास रौशनी
उसे बिखेरती हुई आसपास
वो एकबार आंधी में गिरे
एकपेड़ की तरह मरीथी
जानेकितने राहगीरों को छाया देने के बाद
कई बार वो मरी
रसोइघर में
धुएंसे घिर कर उसे मरते हुए देखा था मैंने
कमर दर्द से परेशांन
खाना बनाते हुए
गुसलखाने में भी उसे मरते हुए देखा गयाथा
चुपचाप जब वो बैठी होतीथी
खिड़कीके पास शामको इंतज़ार करते
अपनी मौन में भी अनेकोबार मरी हुई थी
रात में बिस्तर पर
अपनी इच्छाके विरुद्ध भी वो मर जाती थी
अक्सर सुख की तलाश में
प्रसव वेदना में उसकी मृत्यु तय थी
वो मरी थी बार बार
जिन्दाहोकर
अन्याय सेलड़तेहुए
मरी थी
वोअस्पताल में
आख़िरीबार चीखते हुए
उसका मरना
हमारे मरने की भी निशानी थी
उसका जिंदा रहना जरूरी था धरती के लिए भी
वो मरने के बाद
एक जुगनू बनीथी
अँधेरे में चमकते हुए
उसेजबकि प्यार किया जाना चाहिएथा
लेकिन उसका दुःख कभी ठीक ठीक समझा नहीं गया इतिहास में
कई बार तो वो इस वज़ह से भी मरी
किउसे क्योंसमझा जताहै
सिर्फ एक देह
जबकि आत्मा भीहोती है
उसके भीतर

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