बुधवार, 1 जुलाई 2015

आ राहाहूँकोलकत्ता

आ रहा हूँ कोलकत्ता!
मैं तुम्हारे पास आ रहा हूँ
अपनी बाँहों में भरने तुम्हारे पास आ रहा हूँ 
लहरों की तरह दौड़ता हुआ 
तुम्हारे पास अगले महीने सुबह की गाडी से आ रहा हूँ
दुःख की इस घड़ी में 
तुम्हारा हाथ पकड़ने के लिए 
देने के लिए साथ 
सर्द रातों में 
ठिठुरते हुए
हावड़ा ब्रिज पर तुम्हारे साथ
थोड़ी दूर चलने के लिए 
हुगली नदी में तुम्हारे साथ अपना चेहरा देखने के लिए 
एक पुराने इतिहास को समेटने के लिए आ रहा हूँ
कोलकता मैं आ रहा हूँ';
जब मेरे घुटने का दर्द बढ़ गया 
'
हो गया इस उम्र में दिल का मरीज़ 
तो अपनेउसी दिल को विक्टोरिया मेमोरियल की पार्क में 
फिर से खोजने के लिए आ रहां हूँ.
जहाँ तुम्हे शाम के अँधेरे में चूमा था पहली बार .
तमाम वर्जनाओं को ध्वस्त करते हुए 
पाखण्ड से भरी नैतिकता की धज्जियाँ उड़ाते हुए 
सोनागाछी में आ रहा हूँ उनकी सिसकियों को फिर से सुन ने के लिए .
बड़ा बाज़ार में तुम्हे शरमाते हुए देखने के लिए 
धर्मतल्ला की भीड़ में पसीने से तरबतर 
पैदल चलते हुए 
ट्राम में तुम्हे याद करने के लिए आ रहा हूँ
उबकर दिल्ली के गर्मी से 
एक राजनीतिक प्रहसन को देखने के बाद 
थोडा सुस्ताने के लिए आ रहा हूँ
ये जानते हुए कि तुम्हारी बेचैनी गयी नहीं है 
तुम बहुत तकलीफ में हो 
छले गए हो कई बार 
अस्पताल में पड़े हो 
बार बार खून चढ़ाया जाता है तुम्हे 
करवट लेते हो 
पर तुम्हारी नींद पुरी नहीं होती है
तुम्हारे सपनो को देखने के लिए भी आ रहा हूँ
क्या फिर तुम लोगे एक बार और अंगडाई 
क्या देखोगे अपना चेहरा आईने में 
क्या चेहरे पर माँरोगे पानी की छीटे
क्या रूमाल से साफ़ करोगे फिर उसे
कोलकत्ता !
मैं आ रहा हूँ कयी सालों के बाद 
ये देखने कि जब सब कुछ बदल गया है
तो तुम कितना बदल गए हो
चढ़ गया हूँ ट्रेन में 
गार्ड ने सीटी दे दी है 
कोलकता मैं आ रहा हूँ 
तुम्हे अपनी स्मृतियों में समेटने के लिए 
कि तुम् रहोगे जिन्दा मेरे भीतर 
मरोगे नहीं कभी 
और एक चिंगारी भड़कती रहेगी मेरे सीने में तुमसे मिलकर .
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·         Vimal Kumar


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