गुरुवार, 16 जुलाई 2015

शिलालेख

गुजरात के शिलालेख .........
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एक बात मैं आपको बताऊँ
जब मैं गुजरात में था
तो अक्सर सुबह सुबह टहलने नदी के किनारे जाता था 
वहीं कई बार पानी के भीतर घडियालों से खेलने लगता था
एक दिन एक घड़ियाल के बच्चे को उठाकर लाया था अपने घर
आपको ये जानकर आश्चर्य होगा
जब मैं गुजरात में था
तो एक बार जंगल में जाकर शेरो से हाथ भी मिला आया था
उसके बाद शेर भी मुझे पहचान ने लगे थे
पेड़ भी मुझे जन ने लगे थे
उसके बाद मैंने सोचा
मैं खुद शेर क्यों न बन जाऊं
फिरआप सब की दुआओं से
मैं एक दिन शेर भी बन गया
जब मैं गुजरात में था
तो जादू की कला वहीं सीखीथी मैंने
हाथ की सफाई में उस्ताद हो गया था
तो मजमे लगाने में भी निपुण
बांसुरी बजाने भी लगा था बचपन में
सपने दिखाने के गुर भी सीख गया था
जब मैं गुजरात में था
तो अक्सर दूरबीन लगाकर
खोजने निकल जाता था गरीबी
अक्सर मुझे कोई गरीब आदमी नहीं मिलता था
एक बार मुझे एक गरीब बुढिया मिली तो मैं रोने लगा
तब से मेरा दिल पसीज ने लगता है
किसी आदमी को मुसीबत में देखकर
जब मैं गुजरात में था
तो इतिहास की खूब किताबें पढी थी मैं
वेदों पर अटूट विश्वास तब से है
ये आप मेरे इतिहास ज्ञान से भी पता लगा सकते हैं
आपको जानकर ये खुशी होगी
कि एक बार मुझे एक ज्योतिष ने बताया
कि इस देश के असली दुश्मन कम्युनिस्ट हैं
अगर वे नहीं होते तो इस देश की बहुत तरकी होती
एक राज़ की बात बताता हूँ आपको
जब मैं गुजरात में था
तो गुजरात मेरे भीतर धड़कता था
ये पता लगाना मुश्किल था
कि मैं गुजरात के भीतर हूँ या गुजरात मेरे भीतर
एक वाक्य ऐसा हुआ मेरे जीवन में
पोरबंदर में मुझे शाम को पार्क में बापू मिले
उन्होंने कहा
तुम हमेशा सत्य की राह पर चलना
अहिंसा मेंकरना यकीन

तब से मैं सत्य के मार्ग पर चल रहा हूँ
ये आप भी देख रहे हैं.
इसलिए कह रहा हूँ
गुजरात में एक बार भी दंगा नहीं हुआ
जो लोग मरे वे इस देश के लिए शहीद हुए थे
लेकिन मुझे कातिल भी बताया गया
पर खुदा का साया मेरे ऊपर था
और मैं आज आपके सामने हूँ
जब मैं गुजरात में था
तो बहुत मज़े के दिन थे
मेरे बदन से खूशबू आने लगी थी
मेरी आँखों से रौशनी झरने लगी थी
मेरे शब्दों से मोती निकलने लगे थे
बादलों की तरह मैं उड़ने लगा था
पतंग भी आसमान पर उड़ाने लगा था
दफ्तर के सामने ही कंचे खेलने लगा था
जब मैं गुजरात में था
कवितायेँ भी लिखने लगा था
कुछ कहानियां भी लिखी थी मैंने
डायरी भी नियमित लिखता था
घर में अकेला था
समय भी बहुत था
दिन रात देश के बारे में सोचते हुए दुबला हो गया था
तब मैं चशमा भी लगाता था
जब मैं गुजरात में था
तो मुझे अक्सर लगता था
कि मैं गुजरात में नहीं हूँ
मैं तो पुरे ब्रह्माण्ड में हूँ
अनंत में हूँ
एक शून्य में हूँ
नक्षत्रों के आसपास
आकाश गंगा की आगोश में
क्या दिव्य अनुभूति होती थी
अब मैं अध्यात्म की खोज में
गुजरात से दूर बहुत दूर निकल गया हूँ
इतने देशीं की यात्रा करते हुए
लेकिन गुजरात अभी भी भूला नहीं हूँ
वो मेरे शरीर में है रक्त की तरह
वो मेरी अस्थियों में है
मज्जा की तरह
वो मुझे अभी भी पुकारता है एक बच्चे की तरह
पता नहीं क्यों
मुझे पूरा संसार अब गुजरात ही लगता है
आप एक बार गुजरात जरूर जाये
जैसे मरने से पहले लोग चारों धाम जाते हैं
आप अपनी तस्वीर ट्विटर पर जरूर डालें
मैं री ट्विट करूँगा
और फिर देखिएगा
आपकी सारी 
छु मंतर 

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