शनिवार, 11 जुलाई 2015

चाँद से मुलाक़ात है असंभव

असंभव  है धरती पर चाँद से मिलना
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शायद  मैं नहीं मिल पाउँगा अब तुमसे इस दुनिया में कभी
यह कहना ठीक नहीं होगा जब तुमसे मिलने का एक दिन मुक़र्रर हुआ है
पर जो चीज़ें  तय थी जिन्दगी में वे कितनी अनिश्चित  हो गयीं है

जब रौशनी रोज दम तोड़ रही है पानी में ज़हर मिलता जा रहा हो  
मैं कैसे कह दूँ कि तुमसे मिल पाउँगा ही  अब फिर कभी
खुदा न खास्ते  कभी मिला सड़क पर अचानक या प्लेटफार्म पर से नीचे उतरते हुए
तो समझो एक दरख़्त की तरह ही मिलूँगा तुमसे हाथ मिलाते हुए
कितने लोगों से मिलने के इंतज़ार में एक दरख़्त में ही तब्दील हो गया हूँ

अगर दरख़्त की तरह नहीं मिला तो समझो एक पत्थर की तरह जरूर मिलूँगा
जिस पर अपने ज़माने की कई लगी हो चरों तरफ  
कायदे से मुझे इस बरसात के मौसम  में एक बादल  की तरह ही मिलना चाहिए था
लेकिन मैं आदमी से  बादल बन ने की इच्छा लिए बुढा हो चला हूँ
धुप और खुशबू  की तरह मिलता तो मुझे भी अच्छा लगता
तुमसे अगर मिला कभी मैं अपने शहर से बाहर समंदर के किनारे
जिसकी सम्भावना बहुत कम है लगभग असंभव
तो एक किताब की तरह ही मिलना चाहूँगा
लेकिन हिन्दी में किताबों के छपने का संकट भी कम नहीं है

शायद इसलिए कहता हूँ मैं कि अब शायद तुमसे कभी नहीं मिलूँगा
अगर मिल भी गया तुमसे अपने दफ्तर के आसपास लंच के समय मूंगफली खाते हुए
तो मुझे भी लगेगा कि तुमसे कहाँ मिला हूँ इस तरह मिलकर
लेकिन एक सड़क जिस तरह मिलती है किसी सड़क से चौराहे पर फिर आगे निकल जाती है
उस तरह तो मिला ही जा सकता है किसी दिन शाम को
भले उसमे एक पूल और रेलगाड़ी के मिलने की आवाज़ न हो शामिल
एक आदमी के चाँद से मिलने की ख्वाहिश न हो छिपी हुई
लेकिन मैं   डर है कि तारीख मुक़र्रर होने के बाद भी

तुमसे अब शायद नहीं मिल पाउँगा
 क्योंकि चाँद से धरती पर कभी नहीं मिला जा सकता है
और अक्सर मिलने के बाद किसी से तेज आंधियां चलने लगती हैं मेरे भीतर
और फिर इधर उधर चीज़ें बिखर जाती है
तहस नहस हो जता है सबकुछ
अख़बारों के पन्ने फडफड़ाने  लगते है

 और बरामदे पर जमा हो जाती है ढेर सारी धुल ,

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