रविवार, 15 नवंबर 2015

फिर जा रहे हो विदेश

अब तुम फिर जा रहे हो विदेश
आखिर कितनी बार जाओगे
क्या विश्वाविजयी बनने का स्वप्न भी देखने लगे हो
बहुत भूख है तुम्हारे अन्दर
अमर होने की
इसलिए तुम नहीं जाते हो कालाहांडी
ये बेलछी या गढ़चिरौली
तुम वहीं जाते हो जो तुम्हारे लिए मुफीद जगह है
जहाँ तुम अपनी फसल काटना चाहते हो
अगर तुम जाओगे भी
तो वहां एक तमाशा ही दिखाओगे
कुछ बेच लोगे
कुछ खरीद लोगे
कुछ हड़प भी लोगे
एक फोटो
तो जरूर खीचालोगे
क्या तुम फिर जा रहे हो कहीं
किसी शहर की यात्रा में
मैं तो मेरठ भी नहीं जा पा रहा हूँ
मेरी जेब कट गयी है रस्ते में
तुम फिर जा रहे हो विदेश
इस तरह तुम हर मोड़ पर
लगवा सकोगे अपने पोस्टर
कि तुमने कई देशों में
जीत लिया है किला
क्या तुम उस बुढिया के घर जाओगे
जो ठंढ से ठिठुर रही है
मुझे मालूम है तुम जरूर जाओगे
पर एक कैमरा टीम के साथ जाओगे
साथ में होंगे कुछ अखबार नवीस भी
जो इस मुल्क को बताएँगे
कि तुम्हे बहुत याद आती है गांधी की

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