स्मृति
में बरसात
करीब तीस साल बाद उस से मेरी यह चौथी मुलाक़ात थी
अगर थोडा सच कहूँ तो कायदे
से मेरी पहली मुलाक़ात थी
अगर और बोलूं जरा साफ़ साफ़
तो वो मेरी मुलाक़ात भी नहीं
थी
तीस साल बाद वो पूल भी अब
कहाँ पूल था
जिसके नीचे मैं खडा था
टूट ते हुए आसमान के नीचे
मैं भी कहाँ वो मैं था
जो था पहले तीस साल
आधे बाजू की एक कमीज़ पहने
अगर आपने हुलिए का बयां
करूँ
तो मैं आंधी में गिरे एक
पेड़ की तरह था
उतना ही ज़र्ज़र जितना वो पूल
था
उस से तीस पहले जब मिला था
तो अब वो शाम भी नहीं थी
क्योंकि इस शहर की शामें भी
बदल चुकी थी
अब आसमान पर थोड़ा चाँद भी
तिरछा हो गया था
तारे भी थोडा उदास हो गए थे
रोशनी भी अब कहाँ रौशनी थी
पर वो थी आज मेरे सामने
अपने रंगों और पंखों के साथ
अपने सपनों और अपनी सुन्दर
इच्छाओं के साथ
सिर्फ वक़्त ही नहीं था मेरे
साथ
मेरी घड़ी भी मुझको धोखा दे चुकी थी
अब सिर्फ एक कागज़ था
एक कलम थी
स्याही थी
इसलिए तीस साल पहले मेरी
उसकी मुलाक़ात को
तीस साल बाद की मुलाक़ात से
जोड़कर देखा नहीं जा सकता था
अगर सच कहूँ तो पहली
मुलाक़ात भी पहली मुलाक़ात कहाँ थी
कितना कम जान पाया था उसे
आज तक
कितना कम बता पाया था उसे
आज तक
कितना उसे छिपा पाया था
कितना सच अपनाउसे सुना पाया था
कम नहीं होते हैं तीस साल
जीवन के
कम नहीं होते है इतने दिन
किसी मुल्क के
छह चुनाव हो चुके थे
कई पार्टियों की सरकारें
आकर चली गयी थी
कई वादे सब धुआं हो चुके थे
कई घोषणायें दम थोड चुकी
थीं
मैं भी पहुँच गया था एक
सूखते हुए कुएं के किनारे
प्यास मेरी भी बढ़ चुकी थी
बहुत कम बची थी रात
ज्यादा अँधेरा था
बहुत कम थी सांस
हवा भी अधिक नहीं थी
बहुत कम गले में आवाज़ बची
थी
तीस साल में बहुत धुल उड़
चुकी थी
भूकंप के झटके
और तूफ़ान भी आकर चले गए थे
मकडी के जले घरों में लग
चुके थे
तीस साल में मेरी उस से
मेरी ये चौथी मुलाक़ात थी
पर कायदे से उससे टेलीफ़ोन पर भी मेरी कोई बात
नहीं थी
बस एक मेज़ थी
काफी का प्याला था
बहार बारिश की कुछ बूंदें
थी
भीतर एक दस्तक था
थोड़ी सी खिड़की खुली थी
परदे थोड़े खिसके थे
वो अचानक अजीब सी मुलाक़ात
थी
आखिर वो कितनी देर तक ही मेरे साथ थी
स्मृति में बची अब सिर्फ
उस दिन की बरसात थी
विमल कुमार
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