गुरुवार, 24 दिसंबर 2015

स्वीकार

कुछ दाग मेरे ऊपर भी है
अब मरने से पहले
स्वीकार लेना चाहिए मुझे
लालच और नफरत
आग और धुआं
क्या क्या नहीं था
मेरे भीतर भी
जिन्दगी भर
एक भेडिये से लड़ता रहा
एक गीदड़ से झगड़ता रहा
अपन चेहरा बदलता रहा
शिकस्त होता रहा
कबूल कर लेना चाहिए अब
मुझे अपने सारे गुनाह
तुमसे विदा लेने से पहले
एक मुखौटा मैंने भी पहन रखा था
कब्र के भीतर सोते हुए
एक चश्मा लगा रखा था आँखों पर
अंधेरों को ढोते हुए
दफन होगया मैं जरूर
जो लिखा गया इतिहास
मेरा बारे में
वो सच नहीं था
कुछ दाग मेरे ऊपर थे
लेकिन अपने दाग मैं छिपाता रहा
दूसरों के दाग देखकर
रोज़ मैं  चिल्लाता  रहा 
Vimal Kumar
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