गुरुवार, 24 दिसंबर 2015

जिंदा हूँ तुम्हारी आँखों मे

चला गया हूँ अब
तुम्हारे सामने से जरुर
परिदृश्य से गायब हो गया हूँ

तुम मुझे खोजोगे
तो किसी जलसे में भी नहीं मिलूँगा
नहीं दिखूंगा कहीं
किसी चीज़ की ओट में
न किसी किताब में
न किसी अखबार की तस्वीर में
न किसी रुपहले परदे पर बहस में
मैं तुम्हारे शहर में भी नहीं हूँ
नदी और समंदर और पर्वतों और जंगलों से भी बहुत दूर
दूर गुफाओं से
लेकिन मैं मर नहीं गया हूँ
एक कब्र में रहता जरुर हूँ
जलकर राख जरुर हो गया हूँ
जब तक आग है
धुआं हैं
बहता हुआ खून है
है सीने में जलन
कसमसाती रगें हैं
भिची हुई मुठियाँ है
मैं ज़िंदा हूँ
लेकिन तुम मुझे देख नहीं सकते हो
किसी शब्द में कर सकते हो महसूस
तुम मुझसे बिना किसे पते के मिल सकते हो
मैं मरा नहीं हूँ
ज़िंदा हूँ
तुम्हारी आँखों में
एक सपना बनकर
और सपने कभी दफन नहीं होते
वे नहीं रहते कभी किसी
कब्र में .
एक मुर्दे की तरह .

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