रविवार, 6 दिसंबर 2015

अगर किया होता प्रेम

अगर तुमने किया होता मुझसे प्रेम
तो बादल  जरुर आते मेरे शहर में
और बारिश जरुर हुई होती अब तक

अगर तुमने लिखा होता मुझे एक भी पत्र
तो नदी जरुर मुस्कराई होती
उसने पूछा होता मेरा हाल

 अगर तुमने एक बार भी  किया होता टेलीफ़ोन
तो तारे जरुर आते मेरे छत  पर टिमटिमाते हुए
वहीं से उन्होंने हाथ हिलाया होता मुझे

अगर तुम मिली होती कभी फिर रास्ते में
तो पेड़ों में जरुर कुछ निकले होते नए पत्ते
डाल कुछ झुकी होती मुझसे हाथ मिलाने के लिए बेताब

अगर तुमने पकड़ा होता मेरा हाथ कभी
 अँधेरे में लेते हुए चुम्बन
तो अंगारे जरुर भड़के होते
कुछ रौशनी हुई होती चरागों में

लेकिन आज तक न बारिश हुई
न नदी ही मुस्कराई
न तारे ही आये
न पेड़ों में निकले पत्ते
न रौशनी हुई

जितनी उम्मीद से आया था इस दुनिया में
उतनी नाउम्मीदी लेकर जा रहा हूँ
अब

फिर भी एक उम्मीद है

एक स्वप्न है
भले ही कुछ सांस अभी दफन  है .
सीने में


अगर तुम रहती थोड़ी देर भी इसी सीने में
सीने को इस तरह चाकू से
मुझे रोज काटना नहीं पड़ता

दुःख को इस तरह बांटना नहीं पड़ता
जो है अब तक निरर्थक उसे छांटना नहीं पड़ता






कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें