गुरुवार, 24 दिसंबर 2015

कुछ भी भेज दो

ये तस्वीर भेज दो जिसमे तुम बैठी हो एक चट्टान के पास
अगर नहीं भेज सकती हो तो
अपनी छाया ही भेज दो
जो मिल गयी आज शाम के साथ
अगर तुम नहीं भेज सकती हो अपनी छाया
तो अपने क़दमों ही आहट ही भेज दो
तुम यह भी कह सकती हो
कि मैं अपनी आहट को कैसे भेजूं
फिर तुम अपनी नींद का एक टुकडा ही भेज दो
मेरे पास किसी लिफाफे में बंद करके
अगर ये भी भेजना हो तुम्हारे लिए मुश्किल
तो तुम अपने स्वप्न ही भेज दो मेरे पास
लेकिन तुम्हे डर लगेगा
कि कहीं ये टूट न जाएँ भेजने पर
कोई बात नहीं
तुम अपनी कुछ स्मृतियाँ ही भेज दो
ताकि मुझे दिलासा हो
कि कोई एक चीज़ है तुम्हारी दी हुई मेरे पास
अगर तुम्हे इन्हें भेजने में हो रही हो दिक्कत
तो बताना
मैं तुमसे कुछ भी नहीं कहूँगा भेजने को
मैं तो सिर्फ तुम्हे पुकारना चाहता हूँ
घाटियों में कि उसकी आवाज़ गूंजती रहे मेरे कानो में
इन्ही आवाजों के सहारे ही तो जी सका हूँ
अब तक यह ज़िन्दगी
मुझे मालूम है
तुम इतनी दूर हो
कि मेरी आवाज़ भी तुम्हे सुनायी नहीं देंगी
तुम खुद भी ज़िन्दगी की जद्दो जहद में फंसी हो
मैं भी तुम्हे इतनी दूर से वो सब कुछ देना चाहता हूँ
जो पास रहकर भी तुम्हे नहीं दे सका
और अगर दिया भी होगा
तो तुमने नहीं पहचाना होगा
वही था मेरा प्यार
आसमान पर टिमटिमाता हुआ
सुदूर एक तारे की तरह
जो ठीक ठीक दिखाई नहीं देता
नंगी आँखों से 

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