वैसे तो वे बहुत बोलते हैं दिन रात कुछ न कुछ कहते हैं पर आजकल वे बहुत चुप हैं जब भी मारा जाता है कोई दंगे में होता है किसी का बलात्कार वे लगा लेते हैं एक रहस्यमयी चुप्पी मन की बात में भी वे कुछ नहीं कहते हैं फिर एक दिन अचानक। वे देने लगते हैं प्रवचन किसी रैली में वैसे तो वे बहुत बोलते हैं पर अक्सर देखा है उनको वे चुप्पी लगा लेते हैं बचते हैं सवालों से जवाब वे नहीं देते हैं उन्हें मालूम है कहाँ खामोशी की जरूरत है कहाँ जरूरी है बोलना कहाँ कन्नी काट लेनाहै कहाँ निकालना है पतली गली से वैसे तो वे दिन रात बोलते हैं पर अक्सर वे मौन हो जाते चादर तान कर सो जाते हैं ।
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