अगर वृक्ष छाया देने से कर दें , इनकार तो उनसे मैं छांव कैसे मांगू अगर चराग नही जले मेरे कमरे मे तो उनसे कैसे कहूँ कि वो मुझे रौशनी दें अगर बादल नही बरसे मेरे आंगन में तो कैसे कह दूं उनको कि दो बूंद से वे भिंगोये मुझ को अगर कोई नही चाहे करना मुझ से प्रेम तो उस से प्रेम की उम्मीद क्यों करूँ पेड़ों से चरागों से बादलों से क्या मैंने एक स्वार्थ का नाता ही ब नाया था अब तक ?
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