मैंने हिटलर को तो नहीं देखा है
पर उस आदमी को ज़रूर देखा है
जो मेरे शहर में इन दिनों आया हुआ है
एक अजीब वेश में
मैंने दूर से ही
उसकी चाल को देखा है,
उसकी ढाल को देखा .है.
मैंने हिटलर को तो नहीं देखा है,
पर उसकी भाषा में बोलते उस आदमी को ज़रूर देखा है,
उसकी आवाज़ मैंने
सुनी है
रेडियो पर
जिस तरह एक बार हिटलर की आवज़ सुनी थी मैंने
उसके बाद ही
मैंने उस खून को ज़रुर देखा है
जो बहते हुए आया था मेरे घर तक
मैंने वो चीत्कारें सुनी थी,
वो चीख पुकार
वो लपटें वो धुआं भी देखा था.
मैंने हिटलर को तो नहीं देखा है.
पर उस आदमी को देखा है
जिसकी मूछें
जिसका हैट
किसी को दिखाई नहीं देता
आजकल
मैंने हिटलर को तो नहीं देखा है
पर उस आदमी को जरूर देखा है
जिसकी आँखों में
नफरत है उसी तरह
उसी तरह चालाकी
उसी तरह जिस तरह लोमड़ी की आँखों में होती है.
ये क्या हो गया
ये कैसा वक़्त आ गया है
मैं हिटलर को तो नहीं देखा
पर उसके समर्थकों को देखा है अपने मुल्क में
पर उनलोगो ने शायद नहीं देखा
इतिहास को बनते बिगड़ते
कितनी देर लगती है
उनलोगों ने शायद हमारे सीने के भीतर जलती
उस आग को नहीं देखा है,
जिसे देखकर हिटलरभीअकेले में
कभी कभी
चिल्लाया
करता था
और वो भीतर ही भीतर
डर भी जाया करता था.
विमल कुमार
पर उस आदमी को ज़रूर देखा है
जो मेरे शहर में इन दिनों आया हुआ है
एक अजीब वेश में
मैंने दूर से ही
उसकी चाल को देखा है,
उसकी ढाल को देखा .है.
मैंने हिटलर को तो नहीं देखा है,
पर उसकी भाषा में बोलते उस आदमी को ज़रूर देखा है,
उसकी आवाज़ मैंने
सुनी है
रेडियो पर
जिस तरह एक बार हिटलर की आवज़ सुनी थी मैंने
उसके बाद ही
मैंने उस खून को ज़रुर देखा है
जो बहते हुए आया था मेरे घर तक
मैंने वो चीत्कारें सुनी थी,
वो चीख पुकार
वो लपटें वो धुआं भी देखा था.
मैंने हिटलर को तो नहीं देखा है.
पर उस आदमी को देखा है
जिसकी मूछें
जिसका हैट
किसी को दिखाई नहीं देता
आजकल
मैंने हिटलर को तो नहीं देखा है
पर उस आदमी को जरूर देखा है
जिसकी आँखों में
नफरत है उसी तरह
उसी तरह चालाकी
उसी तरह जिस तरह लोमड़ी की आँखों में होती है.
ये क्या हो गया
ये कैसा वक़्त आ गया है
मैं हिटलर को तो नहीं देखा
पर उसके समर्थकों को देखा है अपने मुल्क में
पर उनलोगो ने शायद नहीं देखा
इतिहास को बनते बिगड़ते
कितनी देर लगती है
उनलोगों ने शायद हमारे सीने के भीतर जलती
उस आग को नहीं देखा है,
जिसे देखकर हिटलरभीअकेले में
कभी कभी
चिल्लाया
करता था
और वो भीतर ही भीतर
डर भी जाया करता था.
विमल कुमार
Antar ki aag..kabhi maf nahi karti...kaun n dare....kitni sarthak oe anekon aayamon ko samete rachna...
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