गुरुवार, 27 मार्च 2014

दशावतार

यह कौन सा रूप है  प्रभु तुम्हारा
  तुम्ही कर रहे हो देश को बर्बाद
तुम्ही कह रहे देश को मिटने नहीं दूंगा
तुम्ही फैला रहे हो सबके बीच नफरत.
तुम्ही कह रहे हो मुल्क में झगड़े बढ़ने नहीं दूंगा.
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तुम्ही कर रहे हो वर्षों से हिंसा अब तक
फिर अहिंसा का पाठ भी तुम्ही पढ़ा रहे हो
दस रुपये में भर पेट भोजन मिलता है
ये कह कर तुम  हमको रोज़ चिढ़ा रहे हो.
शौपिंग माल और फाइव स्टार  होटल बना कर
तुम हमारी गरीबी का  रोज़ मजाक उड़ा  रहे हो.


तुम्ही छीन रहे हो प्रभु निवाला हमसे
तुम्ही खाद्य सुरक्षा कानून बना रहे हो.
तुम महंगाई  रोकने की बात कहते हो

फिर  डीजल गैस की कीमत बढ़ा रहे हो.
बुरी तरह लूट कर इस देश का पैसा

स्विस बैंक में काला    धन भी  जमा करवा रहे हो
तुम वर्षों से चुनाव सुधार की बात करते हो.
फिर उसमे कला धन भी   तुम्ही  लगा रहे हो

तुम्ही कर रहे हो    भ्रष्टाचार  दिन प्रतिदिन
तुम्ही उस पर राष्ट्रीय सेमीनार भी करा रहे हो

ये कौन सा नया अवतार है प्रभु तुम्हारा
इस चुनाव में खड़ा है परिवार तुम्हारा
और तुम्ही परिवारवाद के खिलाफ शंख भी बजा रहे हो

कितने धर्म निरपेक्ष हो तुम प्रभुहमने देख लिया
कितने दंगे भी तुम  रोज़   करा रहे हो.
तुम कितने राष्ट्रभक्त हो यह भी पता चल गया
डिफेन्स सेक्टर में जो ऍफ़.डी.आयी ला रहे हो.
बात करते हो समाजवाद की
रोज अमेरिका से  जो  हाथ मिला रहे हो

 ये अवतार नहीं देखा था हमने कभी तुम्हारा.
भक्तों से कम,दलालों से   अधिक बतिया रहे हो.

 वाकई कई रूपों में हो  अब तुम दिखाई देते हो.
 मंदिरों में नहीं कोठियों में अधिक  नज़र आ रहे हो.

रावण तुम्ही हो इस युग के
 कुर्सी हथियाने   के लिए
लंका  भी तुम्ही जला रहे हो.

विमल कुमार

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