एक टुकडा ही हूँ मै
पत्थर का
है सिर्फ फर्क इतना
नहीं दिखता हूँ चाँद की तरह.
दूर से
तुम क्या ये जान ना चाहती हो
चाँद क्यों नहीं हूँ
या चाँद फिर मेरी तरह पत्थर क्यों नहीं है.
कुछ भी अनुभव कर लो
बना लो कोई भी राय
मेरे बारे में
पर मै चाँद की तरह कोई पत्थर नहीं हूँ
सुन्दर तो वो चीज़ें हैं
जो नज़दीक आने पर लगे खूबसूरत
दूर से तो चाँद भी लगता सुन्दर
जबकी वो एक टुकड़ा भर है पत्थर का
जितना करीब आती हो मेरे
उतनी ही लगती हो सुन्दर
कई हज़ार चांदों की ख़ूबसूरती लिए हुए.अपने भीतर
तुम भी एक पत्थर हो मेरी तरह
कोई चाँद नहीं.
इसलिए मै किसी चाँद से नहीं
एक पत्थर से ही करता हूँ प्यार..
विमल कुमार
पत्थर का
है सिर्फ फर्क इतना
नहीं दिखता हूँ चाँद की तरह.
दूर से
तुम क्या ये जान ना चाहती हो
चाँद क्यों नहीं हूँ
या चाँद फिर मेरी तरह पत्थर क्यों नहीं है.
कुछ भी अनुभव कर लो
बना लो कोई भी राय
मेरे बारे में
पर मै चाँद की तरह कोई पत्थर नहीं हूँ
सुन्दर तो वो चीज़ें हैं
जो नज़दीक आने पर लगे खूबसूरत
दूर से तो चाँद भी लगता सुन्दर
जबकी वो एक टुकड़ा भर है पत्थर का
जितना करीब आती हो मेरे
उतनी ही लगती हो सुन्दर
कई हज़ार चांदों की ख़ूबसूरती लिए हुए.अपने भीतर
तुम भी एक पत्थर हो मेरी तरह
कोई चाँद नहीं.
इसलिए मै किसी चाँद से नहीं
एक पत्थर से ही करता हूँ प्यार..
विमल कुमार
अच्छी कविता
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