तुम्हे मालूम नहीं
मै कितनी दूर निकल आया हूँ
तुम्हे पुकारते हुए
जंगल में
कितनी दूर चली गयी है
मेरी आवाज़
पर्वतों के उस पार
तुम्हे खोजते हुए
कितनी दूर निकल गयी है मेरी परछाई
तुम्हारी परछाई के पीछे पीछे
मेरी तन्हाई भी चली गयी है
तुम्हारी तन्हाई को ढूंढते हुई घाटियों में
तुम्हे नहीं मालूम
मै कितने गहरे नीचे उतर आया हूँ समुद्र के
तुम्हारी लहरों को खोजते हुए
खोजते हुए तुम्हारे शंख
तुम्हारी सीपियाँ
कितना दूर ऊँचा उड़ने लगा हूँ
तुम्हारे रंगों को खोजते
आसमान में
तुम्हारी आवाज़ का पीछा करता हुआ
पीछा करता हुआ तुम्हारे सपनों
तुम्हारे पतंगों को
आ गया हूँ
भटकते हुए इस रेगिस्तान में
कितना खोज लूं मैं तुम्हे जर्रे जर्रे में
नहीं मिलोगी तुम मुझे कभी भी
तुम जो एक गंध में तब्दील हो गयी हो
तब्दील हो गयी हो एक तरंग में
एक सांस में
नसों के भीतर एक बेचैनी में
एक गहरे आवेग में
अब सिर्फ तुम्हे महसूस किया जा सकता है
पर कभी भी पाया नहीं जा सकता इस संसार में
लेकिन मरने के बाद भी छटपटाती रहेगी मेरी आत्मा
खोजती रहेगी तुम्हे हर अँधेरे में
ये जानते हुए कि तुम नहीं मिलोगी
कभी किसी हाड मांस की शक्ल में
विमल कुमार
मै कितनी दूर निकल आया हूँ
तुम्हे पुकारते हुए
जंगल में
कितनी दूर चली गयी है
मेरी आवाज़
पर्वतों के उस पार
तुम्हे खोजते हुए
कितनी दूर निकल गयी है मेरी परछाई
तुम्हारी परछाई के पीछे पीछे
मेरी तन्हाई भी चली गयी है
तुम्हारी तन्हाई को ढूंढते हुई घाटियों में
तुम्हे नहीं मालूम
मै कितने गहरे नीचे उतर आया हूँ समुद्र के
तुम्हारी लहरों को खोजते हुए
खोजते हुए तुम्हारे शंख
तुम्हारी सीपियाँ
कितना दूर ऊँचा उड़ने लगा हूँ
तुम्हारे रंगों को खोजते
आसमान में
तुम्हारी आवाज़ का पीछा करता हुआ
पीछा करता हुआ तुम्हारे सपनों
तुम्हारे पतंगों को
आ गया हूँ
भटकते हुए इस रेगिस्तान में
कितना खोज लूं मैं तुम्हे जर्रे जर्रे में
नहीं मिलोगी तुम मुझे कभी भी
तुम जो एक गंध में तब्दील हो गयी हो
तब्दील हो गयी हो एक तरंग में
एक सांस में
नसों के भीतर एक बेचैनी में
एक गहरे आवेग में
अब सिर्फ तुम्हे महसूस किया जा सकता है
पर कभी भी पाया नहीं जा सकता इस संसार में
लेकिन मरने के बाद भी छटपटाती रहेगी मेरी आत्मा
खोजती रहेगी तुम्हे हर अँधेरे में
ये जानते हुए कि तुम नहीं मिलोगी
कभी किसी हाड मांस की शक्ल में
विमल कुमार
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