तुमको पसन्द हो न हो
पर मैं तो अपनी बात कहता हूँ
तुम कहोगी कि रहने का सलीका मुझे नहीं आता
पर जिनको आता
वह आख़िर अपनी कहानी में हमें क्या बताता
तुम कहोगे कि दीवार नहीं है, छत नहीं है
तो फिर घर कहाँ है
लेकिन मैं तो ऐसे ही किसी घर में रहता हूँ
तुमको पसन्द हो न हो
पर मैं तो अपनी बात कहता हूँ
सदियों से कोई दुख-दर्द
अपने भीतर सहता हूँ
नदी की कोई धारा हूँ
पत्थरों को ठेलकर
आगे बढ़ता हूँ
तुमको पसन्द हो न हो
पर मैं तो अपनी बात कहता हूँ।
~ विमल कुमार
पर मैं तो अपनी बात कहता हूँ
तुम कहोगी कि रहने का सलीका मुझे नहीं आता
पर जिनको आता
वह आख़िर अपनी कहानी में हमें क्या बताता
तुम कहोगे कि दीवार नहीं है, छत नहीं है
तो फिर घर कहाँ है
लेकिन मैं तो ऐसे ही किसी घर में रहता हूँ
तुमको पसन्द हो न हो
पर मैं तो अपनी बात कहता हूँ
सदियों से कोई दुख-दर्द
अपने भीतर सहता हूँ
नदी की कोई धारा हूँ
पत्थरों को ठेलकर
आगे बढ़ता हूँ
तुमको पसन्द हो न हो
पर मैं तो अपनी बात कहता हूँ।
~ विमल कुमार
अपने मन की बात यूँ हीं कहते रहे .... बहुत सुन्दर …
जवाब देंहटाएंkoi sune ya n sune hum to kah diye.....umda bhav....sundar shabd....
जवाब देंहटाएंheart tuching
जवाब देंहटाएंheart tuching
जवाब देंहटाएंमर्मस्पर्शी
जवाब देंहटाएं