सोमवार, 31 मार्च 2014

immortal man

That man died

having walked for a thousand years in a darkness
he lay there in the middle of the street
probably crushed by a bus

the sun had not risen
nor the birds chirped
a man came running
and said-this was my friend
was going somewhere
how did he die

the crowd on street
prompted a woman
to alight from a rickshaw
she looked at the dead man
and started crying

said-i used to love
had got his letter only yesterday
he wanted to say  so many things  to me
that man,was as if listening to everything
as if it was on
ly sleep that he had
fallen into .on that  street

he wanted to narrate the cause of his death
he did not  want people
to have misconceptions
about  him after his death

just then,came an old man
from some far off land
and said-this is my son
i knew he would not be
able to survive in this world

that dead man on the street
came back to life for a while
shook hands with his friend
kissed the man
and greeted his father
with folded hands

said-please go home
and live in peace
look, iam not dead yet.
and the man became immortal as soon as he said that


vimal kumar
translated by shalini s.saharma .

परछाई की तरह

इसी शहर में तुम आयी थी कभी
मेरे लिए दौडती हुई
एक नदी की तरह

इसी शहर में तुम गायब हो गयी
एक दिन गौरय्या की तरह

इसी पेड़ पर तुम एक दिन खिली थी
मेरे लिए एक फूल की तरह
इसी पेड़ पर
तुम झर  गयी एक सूखे पत्ते की तरह

इसी आसमान पर
 तुम एक रात कौंधी थी बिजली की तरह
इसी आसमान पर तुम टूटकर गिर  गयी
एक तारे की तरह

इसी आईने में तुम दिखी थी
मुझे एक दिन
एक खूबसूरत स्त्री की तरह



ये कैसी ज़िन्दगी की   आंधी थी
एक दिन तुम दिखने लगी
 इसी  आईने में
 एक परछाई की तरह.

विमल कुमार



रविवार, 30 मार्च 2014

What is love


Love
Its knowing the other
It’s also knowing your ownself

Wrong is wrong
And right is right
Its also agreeing to that

Love is also
Singing in the bathroom
Or bathing
Its also inviting someone home for dinner
Its also listening someone’s pain and sorrow
Love is extending your hand
To lift someone up
Its also remoring the thorns
If those are there
Its also picking up stones
From someone’s path

Love
If it’s cajoling
Then its also complaining

Love
It is a calculation
Of the entire life
Additions as well as subtractions

Love
Is as much as to be expressed
So much is to hide
There is lot of crying in love
And also

Smiling as well.

~Vimal kumarenglish translation by - Premlata

एक पत्थर से करता हूँ प्यार

 एक टुकडा ही हूँ मै
पत्थर का
है सिर्फ फर्क इतना
नहीं दिखता हूँ चाँद की तरह.
दूर से


तुम क्या ये जान ना चाहती हो
चाँद क्यों नहीं हूँ
या चाँद फिर मेरी तरह पत्थर क्यों नहीं है.

कुछ भी अनुभव कर लो
बना लो कोई भी  राय
मेरे बारे में
पर मै चाँद की तरह कोई पत्थर नहीं हूँ

सुन्दर तो वो चीज़ें हैं
जो नज़दीक आने पर लगे खूबसूरत
दूर से तो चाँद भी लगता सुन्दर
जबकी वो एक टुकड़ा भर है पत्थर का
जितना करीब आती हो मेरे
 उतनी ही  लगती हो सुन्दर
कई हज़ार चांदों की ख़ूबसूरती लिए हुए.अपने भीतर

तुम भी एक पत्थर हो मेरी तरह
कोई चाँद नहीं.
इसलिए  मै किसी चाँद से नहीं
एक पत्थर से ही करता हूँ प्यार..

विमल कुमार


शनिवार, 29 मार्च 2014

कहाँ छिपा तुम्हारा प्यार.

मुझे सिर्फ इतना बता दो
कहाँ छिपा हुआ है तुम्हारा प्यार
किन पत्तों में किन फूलों में
किन रंगों में
किस घर के किस कोने में.
तकिये में छुपा है या किसी लिहाफ में

नदी की किस धारा में छिपा है तुम्हारा प्यार
धरती की किस कोख में
आसमान में किस आँचल में
बस तुम बता दो इतना
ढूंढ लूँगा मैं उसे

तुम ये भी बता दो
किन शब्दों में छिपा है तुम्हारा प्यार
किस भाषा के किस व्याकरण में
किन संकेतोऔर मुद्राओं में
पूर्णविराम या अर्धविराम में
 ये किसी चंद्रबिन्दू के भीतर

तुम्हारा प्यार
कही तुम्हारे क्रोध में छिपा है
 या तुम्हारे किसी मुस्कान में
सिर्फ इतना बता दो कहाँ छिपा है तुम्हारा प्यार.

अगर छिपा है तुम्हारा प्यार
तो उसे छिपे ही रहने दो
जैसे चाँद छिपा होता हैबादलों के भीतर


इससे और    बढ़ जाती है उस की खूबसूरती

बस मुझे इतना बता दो कहाँ छिपा है तुम्हारा प्यार
ताकि मैउस जगह को भी कर सकूं प्यार
 जहाँ छिपा है तुम्हारा प्यार.
जो है एक मेरा संसार.

विमल कुमार


शुक्रवार, 28 मार्च 2014

तुम्हे नहीं मालूम

तुम्हे मालूम नहीं
मै कितनी दूर निकल आया हूँ
तुम्हे पुकारते हुए
जंगल में

कितनी दूर चली गयी है
मेरी  आवाज़
पर्वतों के उस पार
तुम्हे खोजते हुए

कितनी दूर निकल गयी है मेरी परछाई
तुम्हारी परछाई के पीछे पीछे
मेरी तन्हाई भी चली गयी है
तुम्हारी तन्हाई को ढूंढते हुई घाटियों में


तुम्हे नहीं मालूम
मै कितने गहरे नीचे उतर आया हूँ  समुद्र के
तुम्हारी लहरों को खोजते हुए
खोजते हुए तुम्हारे शंख
तुम्हारी सीपियाँ

कितना दूर ऊँचा उड़ने लगा हूँ
तुम्हारे रंगों को खोजते
आसमान में

तुम्हारी आवाज़ का पीछा करता हुआ
पीछा करता हुआ तुम्हारे सपनों
तुम्हारे पतंगों को
आ गया हूँ
भटकते हुए इस रेगिस्तान में

कितना खोज लूं मैं तुम्हे  जर्रे जर्रे में
नहीं मिलोगी तुम मुझे कभी भी
तुम जो एक गंध में तब्दील हो गयी हो
तब्दील हो गयी हो एक तरंग में

एक सांस में
नसों के भीतर एक बेचैनी में
एक गहरे आवेग में


अब सिर्फ तुम्हे महसूस किया जा सकता है
पर कभी भी पाया नहीं जा सकता इस संसार में

लेकिन मरने के बाद भी छटपटाती रहेगी मेरी आत्मा
 खोजती रहेगी तुम्हे हर अँधेरे में
ये जानते हुए कि तुम नहीं मिलोगी
 कभी किसी  हाड मांस की शक्ल में

विमल कुमार



गुरुवार, 27 मार्च 2014

दशावतार

यह कौन सा रूप है  प्रभु तुम्हारा
  तुम्ही कर रहे हो देश को बर्बाद
तुम्ही कह रहे देश को मिटने नहीं दूंगा
तुम्ही फैला रहे हो सबके बीच नफरत.
तुम्ही कह रहे हो मुल्क में झगड़े बढ़ने नहीं दूंगा.
.

तुम्ही कर रहे हो वर्षों से हिंसा अब तक
फिर अहिंसा का पाठ भी तुम्ही पढ़ा रहे हो
दस रुपये में भर पेट भोजन मिलता है
ये कह कर तुम  हमको रोज़ चिढ़ा रहे हो.
शौपिंग माल और फाइव स्टार  होटल बना कर
तुम हमारी गरीबी का  रोज़ मजाक उड़ा  रहे हो.


तुम्ही छीन रहे हो प्रभु निवाला हमसे
तुम्ही खाद्य सुरक्षा कानून बना रहे हो.
तुम महंगाई  रोकने की बात कहते हो

फिर  डीजल गैस की कीमत बढ़ा रहे हो.
बुरी तरह लूट कर इस देश का पैसा

स्विस बैंक में काला    धन भी  जमा करवा रहे हो
तुम वर्षों से चुनाव सुधार की बात करते हो.
फिर उसमे कला धन भी   तुम्ही  लगा रहे हो

तुम्ही कर रहे हो    भ्रष्टाचार  दिन प्रतिदिन
तुम्ही उस पर राष्ट्रीय सेमीनार भी करा रहे हो

ये कौन सा नया अवतार है प्रभु तुम्हारा
इस चुनाव में खड़ा है परिवार तुम्हारा
और तुम्ही परिवारवाद के खिलाफ शंख भी बजा रहे हो

कितने धर्म निरपेक्ष हो तुम प्रभुहमने देख लिया
कितने दंगे भी तुम  रोज़   करा रहे हो.
तुम कितने राष्ट्रभक्त हो यह भी पता चल गया
डिफेन्स सेक्टर में जो ऍफ़.डी.आयी ला रहे हो.
बात करते हो समाजवाद की
रोज अमेरिका से  जो  हाथ मिला रहे हो

 ये अवतार नहीं देखा था हमने कभी तुम्हारा.
भक्तों से कम,दलालों से   अधिक बतिया रहे हो.

 वाकई कई रूपों में हो  अब तुम दिखाई देते हो.
 मंदिरों में नहीं कोठियों में अधिक  नज़र आ रहे हो.

रावण तुम्ही हो इस युग के
 कुर्सी हथियाने   के लिए
लंका  भी तुम्ही जला रहे हो.

विमल कुमार

मंगलवार, 25 मार्च 2014

बात

बात

तुम्हारे भीतर जो बात है
वो उसमे नहीं
नहीं तो मै
 उससे प्रेम नहीं कर लेता

लेकिन मै भी तुमसे कहाँ प्रेम कर पा रहा हूँ,आयरा
मै तो उस बात से प्रेम कर रहा हूँ
जो तुम्हारे भीतर है

मै तुम्हारे भीतर
धंसकर
उस बात के भीतर ही तो
धंसना चाहता हूँ
यह जानना चाहता हूँ
कि आखीर बात क्या है
कि एक बात के लिए मै तुमसे प्रेम कर रहा हूँ

सबसे बड़ी बात ये है
कि इस मुद्दे पर
तुमसे कितनी बार बात कर चूका हूँ
लेकिन हर बार बात होने के बाद भी
तुमसे आज तक कोई बात नहीं हो सकी

तुम में जो बात थी वो किसी में नहीं थी
लेकिन  अफ़सोस है
 कि तुमने मुझसे बात तो की
 पर
  आज तक
कभी  प्रेम नहीं कर सकी.

विमल कुमार


सोमवार, 24 मार्च 2014

नया हिटलर

मैंने हिटलर को तो नहीं देखा है
पर उस आदमी  को ज़रूर देखा है
जो मेरे शहर  में इन दिनों आया हुआ है
एक अजीब वेश में
मैंने दूर से ही
उसकी चाल को देखा है,
उसकी ढाल को देखा .है.

मैंने हिटलर को तो नहीं देखा है,
पर  उसकी भाषा में बोलते उस आदमी को ज़रूर देखा है,
उसकी आवाज़  मैंने
सुनी है
रेडियो पर
 जिस तरह एक बार हिटलर की आवज़ सुनी थी मैंने
 उसके बाद ही
मैंने उस खून को ज़रुर  देखा है
जो बहते हुए आया था मेरे घर तक
मैंने वो चीत्कारें सुनी थी,
वो चीख पुकार
वो लपटें वो धुआं भी देखा था.


मैंने हिटलर को तो नहीं देखा है.
पर उस आदमी को देखा है
जिसकी मूछें
जिसका हैट
किसी को दिखाई नहीं देता
आजकल

मैंने हिटलर को तो नहीं देखा  है

 पर उस आदमी को जरूर  देखा है
जिसकी आँखों में
नफरत है उसी तरह
उसी तरह चालाकी
उसी तरह जिस तरह लोमड़ी की आँखों में होती है.
ये क्या हो गया
ये कैसा वक़्त आ गया है

मैं हिटलर को तो नहीं देखा

पर उसके   समर्थकों को देखा है अपने मुल्क में
पर उनलोगो  ने शायद  नहीं देखा
 इतिहास को बनते बिगड़ते
कितनी देर लगती  है

उनलोगों ने शायद हमारे  सीने के भीतर जलती
उस आग को  नहीं देखा है,


जिसे देखकर हिटलरभीअकेले  में
कभी कभी
चिल्लाया
करता था
और वो भीतर ही भीतर
डर भी जाया करता था.





विमल कुमार

जीवन का खिलौना

 जीवन का खिलौना
-----------------------
तुम्हे देख कर
 एक बच्चे की तरह क्यों मचलने लगा हूँ
क्यों यह कहने लगा हूँ.
मुझे चाहिए हर हाल में यही खिलौना.
इस उम्र में क्यों जीवित है.
मेरे भीतर एक बच्चा
अभी भी
क्या इस बच्चे को
आज तक नहीं मिला
कोई मनपसंद खिलौना.

विमल कुमार

रविवार, 23 मार्च 2014

अपनी बात कहता हूँ

तुमको पसन्द हो न हो
पर मैं तो अपनी बात कहता हूँ
तुम कहोगी कि रहने का सलीका मुझे नहीं आता

पर जिनको आता
वह आख़िर अपनी कहानी में हमें क्या बताता
तुम कहोगे कि दीवार नहीं है, छत नहीं है
तो फिर घर कहाँ है
लेकिन मैं तो ऐसे ही किसी घर में रहता हूँ

तुमको पसन्द हो न हो
पर मैं तो अपनी बात कहता हूँ

सदियों से कोई दुख-दर्द
अपने भीतर सहता हूँ
नदी की कोई धारा हूँ
पत्थरों को ठेलकर
आगे बढ़ता हूँ

तुमको पसन्द हो न हो
पर मैं तो अपनी बात कहता हूँ।
~ विमल कुमार

नदी और पुल

1.

पुल का एक हिस्सा अतीत में है 
तो दूसरा वर्तमान में 
और तीसरा भविष्य में 
नदी भी डूबी है जितनी अतीत में 
उतनी ही वर्तमान में 
पर उससे भी कहीं ज्यादा डूबी भविष्य में पुल की तरह 

समय की तलवार 
दोनों के जिस्मों को काटती है 
एक ही तरीके से 

2. 

पुल ने इतिहास को बनते हुए देखा है 
नदी ने भी देखा है इतिहास को बनते हुए 
लेकिन अब इतिहास ने दोनों को काफ़ी बदल दिया है 
इस बदले हुए इतिहास को 
गहरी पीड़ा के साथ रेत और पत्थरों ने देखा है 

3. 

पुल का अपना इतिहास है 
तो नदी का भी अपना इतिहास है 
पुल का इतिहास 
मनुष्य ने बनाया है 
नदी ने अपना इतिहास खुद बनाया है 
इसलिए पुल नहीं दौड़ पाता है 
किसी नदी की तरह 

4.

पुल ने जब नदी को पुकारा 
नदी बरसात में ऊपर तक चली आई 
उससे मिलने 
नदी ने जब पुल को पुकारा 
वह चाह कर भी नीचे नहीं उतर सका 
उसके दोनों पाँव थे जमे धरती में 
पुल की यह बेबसी 
उसे अक्सर कचोटती रहती है 

5. 

पुल आसमान में उड़ना चाहता है 
चाहती , नदी भी है 
वह दोनों उड़ नहीं पाते 
दोनों के पास नहीं है कोई पंख 
दोनों आसमान में उड़ती चिड़िया को देखते हैं 
दोनों अगले जन्म में 
चिड़िया बनना चाहते हैं 
इसलिए चिड़िया भी आकर पुल पर बैठती है 
और अपनी प्यास बुझाने के लिए नदी पर झुकती है 

6. 

एक दिन पुल उड़ गया आसमान में 
उसने वहीं से चिल्ला कर कहा 
बड़ा मज़ा आ रहा है मुझे 
एक दिन नदी भी उड़ गई आसमान में 
उसने हाथ हिला कर कहा 
अब तो बादल मेरे पास है 
दरअसल दोनों धरती पर थे 
उनके ख्वाब उड़ा कर ले गए थे आसमान में 

7. 

एक रात पुल नदी पर झुक आया 
उसे चूमने लगा 
नदी पहले तो कसमसाई 
फिर एक रात नदी ने 
पुल को बाहों में भर लिया 
सिर्फ चन्द्रमा था 
उस दिन आसमान में 
और जंगल में सियार थे 
दोनों के प्रेम के साक्षी 

8. 

नदी ने पुल को बाहों में भरते हुए कहा 
तुम कितने जर्जर हो गए हो 
जब भी कोई रेल गुज़रती है तुम्हारे ऊपर से 
मेरा सीना काँप उठता है 
पुल ने नदी के बालों को छूते हुए कहा 
तुम्हारा पानी भी तो सूखता जा रहा है 
तुम रेत में धँसती जा रही हो दिन-रात 
कैसे पकडूँगा अब मैं ऊपर से तुम्हारा हाथ 

9. 

नदी पुल के पास और क़रीब और क़रीब 
आना चाहती है। 
कोई गाना उसके कान में धीरे से गाना चाहती है 
जितना बचा है पानी उसमें उसके संग नहाना चाहती है 

10. 

पुल को भरोसा था 
अगर वह एक दिन गिर गया 
तो नदी उसे थाम लेगी 
नदी को भी यकीन था 
पुल उसे दूर बहने नहीं देगा 
पानी की हर बूँद को 
अपनी अलग कहानी कहने नहीं देगा 

11. 

पुल के पास अब ढेर सारे सपने हैं 
तो नदी के पास भी ख़ूब सारे ख़्वाब 
पुल के पास कोई पुराना गीत है 
नदी के पास भी कोई दुर्लभ राग 

12. 

एक दिन सिर्फ़ पुल था 
नदी कहीं गायब हो गई थी 
एक दिन सिर्फ़ नदी थी 
पुल आसपास कहीं नहीं था 
दोनों उस दिन अकेले थे 
इसलिए अधूरे थे 

13. 

पुल के नीचे काफी अन्धेरा है 
वहाँ अक्सर हत्याएँ होती रहती हैं 
नदी के भीतर भी काफ़ी ख़ून है 
वहाँ कोई छाया डोलती रहती है 
पुल और नदी दिन रात सोचते रहते हैं 
उनके जीवन में यह बुरा वक़्त कहाँ से आ गया 

14. 

पुल के ढेर सारे किस्से हैं 
तो नदी के भी ढेर सारे किस्से हैं 
पुल और नदी एक दूसरे से पूछते हैं 
आख़िर किस्से हमारे लिखता है कौन ? 

15. 

नदी और पुल का यह पुराना किस्सा है 
पता नहीं आखिर किसमें किसका कितना हिस्सा है 

16. 

नदी जब अपने भीतर झाँकती है 
तो उसे शंख , सीपियाँ पत्थर 
और मछलियाँ दिखाई देती हैं 
पुल जब अपने भीतर झाँकता है 
तो उसे किसी का पसीना नज़र आता है 
और लोहा बनता रहता है 
दोनों का यह अन्त्यावलोकन ही 
बचाए हुए है उनकी सुन्दरता 

17. 

नदी के भीतर से रेल जा रही है 
पुल के ऊपर से ट्राम जा रहा है 
एक बच्चा पुल पर बैठा कुछ खा रहा है 
एक आदमी नदी के किनारे गा रहा है 

18. 

ट्रेन के सफर में 
आदमी सब कुछ भूल जाता है 
पर याद रहता है पुल 
यदि रहती है नदी जिन्दगी पर 
दोनों पीछा करते हैं मनुष्य का मृत्यु तक

~ विमल कुमार