बुधवार, 24 फ़रवरी 2016

मुझे बोलने दो

मुझे बोलने दो
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इस बुरे वक़्त में
मुझे बोलने दो
नदी के किनारे
खुले आसमान के नीचे
या जंगल में
या फिर सड़कों पर
कि मेरी आवाज़ तुम तक सुनायी दे सके

मुझे बोलने दो
कि मेरा दम घुट ता जा रहा है
बढ़ती जा रही
मेरी बेचैनियाँ
सांस फूलती जारही है
कसमसाती जा रही हैं
मेरी मुट्ठियाँ
अपनी तकलीफों को कहने दो.
मुझे बोलने दो
कि मेरे सीने में धुआं भर गया है
कोई आग लगी है मेरे भीतर.
और लपटें निकल रही हैं बाहर
अब ज़ुल्म सहा नहीं जाता है
मैं इसलिए भी बोलना चाहताहूँ
कि तुम फैला रहे हो अँधेरा
और फिर उसे रौशनी भी बता रहे हो
अपराधियों को घुमने दे रहे हो
और बेकसूरों को जेल भिजवा रहे हो
हरतरफ एक साज़िश रचवा रहे हो
मुझे बोलने दो
क्योंकि तुमने मेरी योनी में पत्थर डाल दिए हैं
मुझे फर्जी मुठभेड में न जाने कितनी बार मार गिराया है
मेरे बच्चों को भूकों मरने दिया है
मेरी बहन के साथ बलात्कार किया है
और न्याय भी कहाँ मिला है
मुझे बोलने दो
क्योंकि तुम मेरे मुंह पर ताले जड़ रहे हो
जरा देखो
आज़ादी के बाद
तुम भीतर से कितना सड रहे हो
जो कहना चाहता हूँ
कहने नहीं दे रहे हो.
हवा को भी तुम अब
ठीक से बहने नहीं देरहे हो..
आज की रात..
मुझे बोलने दो
कम से कम
एक आज़ाद मुल्क में
सच को सच
और झूठ को झूठ
तो कम से कम मुझे कहने दो..
मुझे अपने समय में
इस क्रूर इतिहास में
अपनी अनछपी किताब में
अफसानों और नज्मों में
रंगों और धुनों में
बोलने दो
पिछले चुनावमेंजीतकर
जो आये हैं नए कातिल
उन्हें कातिल
तो कहने दो..
मुझे बोलने दो
जिंदगी जीने के लिए
बोलने दो
तमाम बंद पडी खिड़कियो
को
अब खोलने दो

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