रविवार, 19 जून 2016

सारी स्त्रियों से प्यार

मैं संसार की सारी स्त्रियों से  करना चाहता था प्रेम 
कृपया इसे अभिधा में न समझा जाये
सच तो य ह है कि एक भी स्त्री ने मुझसे प्रेम नहीं किया आज तक
इसे कृपया निराशा की व्यंजना में भी न समझा जाये
जब व्यंजना और अभिधा के बीच इतनी दूरियां हो गई हों 
जब ज़माने में हर तरह की मजबूरियां हो
लग भग असंभव था
संसार की हर एक स्त्री से प्रेम करना
यहाँ तक कि एक से भी
चाहे वह अपनी पत्नी  ही क्यों न हों
इसलिए मैं सबसे एक तरफा ही प्यार करता रहा
उन्हें बिना बताये बिना जताए 
क्योंकि वही सबसे मुफीद तरीका है प्रेम का
क्योंकि अक्सर यह देखा है मैंने
प्रेम को जाहिर करते ही
स्थितियां हो जाती है  अत्यंत 
 विकट
कई स्त्रियों ने  मु झसे यह सवाल किया
आप प्रेम ही क्यों करना चाहते हैं किसी स्त्री से
हालाँकि उनके इस सवाल में भी दम था
उसे मैं किसी भी सूरत में ख़ारिज नहीं करना चाहता था
स्त्रियों को अपना मित्र भी तो मना सकते हैं
लेकिन अभिधा और व्यंजना की   दू रियों ने
उन्हें मेरा मित्र भी बनने नहीं दिया
लेकिन इस खोज ने मुझे इतना हास्यास्पद बना दिया
कि संसार की सारी स्त्रियों से प्रेम किया जाये
इसलिए मैंने सोचा कि प्रेम करने बेहतर है
उनका शुभचिन्तक बना जाये
हालाँकि इसमें भी एक खतरा है
इस आरोप के लगने का
कि तुम इसलिए उससे प्रेम करना चाहते हो
कि उसे पाने की गहरी इच्छा है
कहीं न कहीं तुम्हारे भीतर

और इसलिए तुम कभी
किसी स्त्री से प्रेम नहीं कर पाओगे
भले मर जाओगे तड़पते हुए उसकी याद में
एक दिन तुम
.संसार की सारी स्त्रियों से अब भी प्रेम करना चाहताहूँ
यह जानते हुए
कि प्रेम एक चाँद है
जिसके कदमों के ठीक नीचे एक सीढी लगा दी जाये
तब भी  वह धरती पर नहीं उतरेगा
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